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[श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] जसा किया. (पाणेण पाणसरिसं कर्य) नीच ने नीच के सदृश किया, (से तं सव्ववेहम्मे) यही सर्ववैधर्य है। और (से तं वेहम्मोवणीए । ) यही वैधम्या पनीत है। (से तं श्रोवम्मे ।) इसी को उपमान प्रमाण जानना चाहिये ।
भावार्थ-उपमोन के दो भेद हैं, जैसे कि-साधोग्नीत और वैधोपनीत।
साधोपनीत तीन प्रकार का है, जैसे किंचित्साधोपनीत, प्रायः साधोपनीत और सर्वसाधोपनीत ।
किंचित्साधोपनीत उसे कहते हैं जिसमें किंचित् साधर्म्यता हो; जैसे जिस प्रकार मेरु पर्वत है, उसी प्रकार सर्षप का बीज है, क्यों कि दोनों ही मूर्ति मान हैं । और जैसे समुद्र है, उसी प्रकार गोष्पद है, क्यों कि दोनों ही जलाशय हैं, तथा जैसे श्रादित्य है उसी प्रकार खद्योत भी है, क्यों कि दोनों ही प्रकाशक और आकाश गामी है. और जैसे चन्द्र है वैसे ही कुमुद है, क्यों कि दोनों ही श्वेत हैं । यही किंचित लोधोपनीत है।
प्रायः साधोपनीत उसे कहते हैं जो करीब २ साधर्म्यता रक्खे, जैसे गौ है वैसे ही गवय नील गाय है केवल सास्नादिवर्जित ही गवय होता है, शेष अङ्गोपाङ्ग गौ के ही सदृश होते हैं ।
देशकालादि भिन्न होने से सर्वसाधर्म्य की उपमा कभी हो ही नहीं सक्ती तथापि इसके निम्नलिखित उदाहरण हैं, जैसे कि-अर्हत् ने अर्हत् के तुल्य तीर्थ प्रवर्तनादि कृत्य किया अथवा चक्रवर्ती ने चक्रवर्ती के समान कार्य किया। इसी प्रकार अन्य उदाहरण जानने चाहिये । इसी को सर्वसाधोपनीत उपमान कहते हैं।
वैधयोग्नीत तीन प्रकार का है। जैसे कि-किञ्चिद्वधर्म्य, प्राय:वैधर्म्य और सर्ववैधर्म्य
किन्क्षिद्वधर्म्य उसे कहते हैं जिसमें किञ्चिन्मात्रा वैधर्म्यता हो, जैसेजैसा सांवली गौ का बछड़ा है वैसा सफेद गौ का नहीं है, क्यों कि वर्ण भेद है। इसी प्रकार
प्रायः वैधर्म्य-जैसे कौत्रा है उसी प्रकार दूध नहीं है। खर्व वैधर्म्य जैसे-नीच ने नीच के समान ही कृत्य किया है। इसी एकार
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