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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् । जैसे कि--(पथगदिटुंतेणं ) प्रस्थक के दृष्टान्त से (वसहिदिटुंतेणं) वसति के दृष्टान्त से (पएसदिटुंतेणं ।) प्रदेश के दृष्टान्त से।
(से किं तं पत्थगदिटुंतेणं ?) प्रस्थक के दृष्टान्त से नयों का स्वरूप किस प्रकार जाना जाता है ? पत्थगदिटुंतेणं) जिन पदार्थों को प्रस्थक के दृष्टान्त द्वारा सिद्ध किया जाय उस को प्रस्थक दृष्टान्त जानना चाहिये, (से जहानामए)xयथा देवदत्तादि नामक ( केइ पुरिसे ) कोई पुरुष ( परसु गहाय ) कुल्हाड़े को लेकर (अडवासमहुशो) अटवी के सन्मुख-अर्थात् वन में (पच्छेजा) जाय (तं पासिया) उसको देख कर (केई वरज्जा) कोई कहे ( कहिं *भवं गच्छसि ? ) आप कहां जाते हैं ? ( अविसुढो गमो भणइ) अविशुद्ध नैगम नय कहता है कि (पथगरस गच्छामि, प्रस्थक के लिये जाता हूँ, फिर (तं च केई छिदमाण) कोई उसको छेदन करते-छीलते हुए (पासित्ता) देख कर (वएज्जा-) कहे कि
( किं भवं छिदसि ?) आप क्या छीलते हैं ? (विसुद्धो णेगमो भगाइ ) विशुद्ध नैगम नय कहता कि-(पत्थयं छिंदामि,) प्रस्थक को छीलता हूं । तदनन्तर तं च केई) कोई उस को तच्छमाणं) तक्ष्ण-समान करते हुए (पासिना) देख कर (वर जा.) कहे कि-(किं भवं तच्छसि ?) आप क्या समान बनारहे हैं ? (विसुद्धतराोणेगमो भगाइ-) विशुद्धतर नैगम
x जैसे कि कोई पुरुष मगध देश प्रसिद्ध 'प्रस्थक'--धान्यमानविशेप के लिये काष्ठमय भाजन बनाने के हेतु कुल्हाड़े को हाथमें लेकर लकड़ी काटने के लिये जंगल में गया ।
- 'पृस्थक' शब्द का अर्थ अमरकोपकारने 'परिमाणविशेष' ही किया है । यथा-"अस्त्रियामादकद्रोणौ खारीवाहो निबुजय : । कुडवः प्रस्थ इत्यायाः, परिमाणार्थकः पृथक् ॥१॥"
* यद्यपि भवान्' शब्द अन्य पुरुष के साथ ही प्रयुक्त होता है, तथापि यहां पर मध्यम पुरुष के साथ व्यवहृत किया गया है, क्योंकि प्रार्ष होने से ऐसा ही प्रमाण भूत है । अथवा"व्यत्ययश्च ।” प्राकृतादिभाषाल क्षणानां व्याययश्च भवति । प्रा० । व्या० । अ० ८ । पा० ३।सू० ४४७ । इससे भी 'गच्छसि क्रिया के साथ 'भवान्' शब्द का प्रयोग ठीक ही है । तथा-'भादीप्तौ' धातु से औणादिक डवतुप्' प्रत्यय का आगमन होने से भवतु' का भवान् रूप सिद्ध होता है और 'शतृ' प्रत्ययान्त होने से भी भा' का 'भवान्' और 'भू' का भवन प्रयोग सिद्ध होता हैं।
+ यद्यपि वह काष्ठ के लिये जा रहा है तथापि-'नके गमाः-वस्तुपरिच्छेदा यस्य' जिसके वस्तु परिच्छेद बहुत हैं वह नैगम नय है । नय अनेक प्रकार से वस्तु परिच्छेद मानते हैं । इस लिये कारण को कार्य का भाव मान कर उक्त प्रकार से उत्तर दिया है।
विशुद्धतर' शब्द इस लिये दिया है कि इसका प्रत्युत्तर पहिले से विशेष शुद्ध है । इसी प्रकार आगे भी जानना चाहिये ।
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