Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

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Page 214
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [उत्तरार्धम] २०६ पदार्थ-(से किं तं वसहिदिटुंतेणं ?) वसति के दृष्टान्त से नयों का स्वरूप कैसे जाना जाता है ? ( वसहिदिटुतेणं ) वसति के दृष्टान्त से नयों का स्वरूप निम्न प्रकार जानना चाहिये--( से जहा नामए केई पुरिसे ) जैसे कोई नामधारी पुरुष (कंचि पुरिसं) किसी पुरुष को (वएज्जा.) कहे कि-(कहिं भवं वससि ?) आप कहां पर रहते हो ? (तं) उसको ( अविसुद्दो णेगमो भगइ-) अविशुद्ध नैगम कहता है-(लोगे वसामि,) *लोक में रहता हूँ, ( लोगे तिविहे पण्णत्ते, ) लोक तोन प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा-) जैसे कि-(उडलोए होलोए तिरिय लोए,) ऊर्ध्व लोक, अधो लोक, तिर्यक् लोक । (तेसु सव्वेसु भवं वससि ?) तो क्या आप उन सभी में बसते हो ? (विसुद्दो) विशुद्ध (णेगमो भणइ) नैगम कहता है--(तिरिअलोए वसामि,) तिर्यक् लोक में रहता हूँ, (तिरिअलोए) तिर्यक् लोक में ( जंबूहीवाइमा सयंभूरमरापजवसाणा ) जम्बूद्वीप से लगा कर स्वयम्भूरमण पर्यन्त ( असंखिजा दीवतमुद्दा ) असंख्येय द्वीप समुद्र (परणत्ता,) प्रतिपादन किये गये हैं, (तेसु सव्वेसु) क्या उन सभी में (भव वससि ?) आप रहते हो ? (विसुद्धतरामो णेगमो, विशुद्धतर नैगम भाग:-) कहता है-(जंबूहोवे बसाभि,) जम्बूद्वीप में रहता हूँ। (जंबूद्दीवे दस खेत्ता) जम्बूद्वीप में दस क्षेत्र पणत्त ।) प्रतिपादन किये गये हैं, (भरहे) भारतवर्ष (एरवए) ऐरवत (हेमवए) हैमवत (एरएणवए ) ऐरण्यवत ( हरिवस्से ) हरिवर्ष (रम्भगवस्से' रम्यकवर्ष (देवकुरू) देवकुरु :उत्तरकुरू) उत्तरकुरु (पुत्रविदेहे) पूर्व महाविदेह और (अवरवि देहे,) पश्चिम महाविदेह, (तेनु सब्बेमु एवं वससि ? ) क्या आप उन सबमें रहते हो ? ( विसुद्धतगो तमो भणइ-) विशुद्धतर नैगम नय कहता है--(भरहे वासे वसामि) भारतवर्ष में रहता हूँ। (भरहे वासे दुविहे पण्णत्ते) भारतवर्ष के दो भेद कहे गये हैं । (तं जहा-) वे इस तरह हैं-(दाहिणभरहे उत्तर दृभरहे श्र) दक्षिणार्द्ध भरत और उत्तरार्ध भरत । ( तेसु सव्वेसु ) क्या उन सभी में भवं वस.स ?) ओप रहते हो ? (विसुद्वतरामो णेगमो) विशुद्धतर नैगम (भणइ-) कहता है- दाहिणभरहे) दक्षिणाद्ध भारत में ( व सामि,) रहता हूँ, ( दाहिणभरहे ) दक्षिणार्द्ध भारत में (अणेगाई) अनेक (गाम-) ग्राम (आगर) खान (णार) ऐसा शहर जिसमें किसी भी प्रकार कर न लिया जाता हो (खेड) खेट-जिसके चारों ओर धूलका परकोटा हो (कम्बड) नगर (मडव) मंडप जिसके आस पास कोई न रहता हो अथवा कोई शहर या प्राम न हो (दोणमुह) द्रोण * लोक तो चतुर्दशरज्यात्मक है, इस लिये अनर्थान्तर है । क्योंकि विशुद्ध नैगम नय अतिव्यप्ति होने से उसे असङ्गगत मानता है। प्रागम में भी कहा है-"तनिवासक्षेत्रस्यापि चतुर्दशरज्वात्मकलोकादनन्तरत्वाद्, इत्थमपि च व्यवहारदर्शनाद्, विशुद्धनैगमस्त्वतिव्याप्तिपरत्वादिदमस. असं मन्यते।" For Private and Personal Use Only

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