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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ) मुख-जिसका जल और स्थल दोनों तरफ से रास्ता हो (पटण) पत्तन-शहर (ग्रासम)
आश्रम-मठ (संवाह) संवाह और (सन्निवेसाई) सन्निवेश-रहने के स्थान आदि, (तेसु सव्वेसु) क्या उन सभी में (भवं वससि ?) आप रहते हो ? (विसुद्धतगओ णेगमी) विशुद्ध तर नैगम (भणइ.) कहता है-( देवदत्तस्स घरे ) देवदत्त के घर में (वप्तामि,) बसता हूँ, ( देवदत्तस्स घरे* ) देवदत्त के घर में (अणेगा कोटगा,) अनेक कोठे हैं, (नेसु सव्वेमु) क्या उन सभी में ( भवं वससि ? ) श्राप रहते हो ? ( गम्भघरे ) गर्भ घर में (वसामि)) रहता हूँ. (एवं) इस प्रकार (विसुहस्प णेगमस्स) विशुद्ध नैगम नय के मत से (वसमाणो वसइ, ) वसते हुए को बसता हुआ माना जाता है।
(स्वमेव बगहारस्सवि) इसी प्रकार + व्यवहार नय का भी मन्तव्य है।
(संगहस्स) संग्रह नय के मत से (संथार समारूढा) शय्या पर आरूढ हुआ हो तभी वह (व सइ,) बसता हुआ कहा जाता है।
( उज्नुसुयस्स ) ऋजुसूत्र नय के मत से ( जेनु अागासपएमु ) जिन आकाश के प्रदेशों में (ोगाढो) अवकाश किया हो (तेनु वसइ.) उनमें ही बसता हुआ माना जाता है, + (तिएहं सदनयाणं) तीनों शब्द नयों के अभिप्राय से पदार्थ (अायभावे वसइ ।) श्रात्म
* "गृहस्य घरोऽपतौ । पा० । ८ । २ । १४४ : . गृहस्य 'घर' इत्यदेशो भवति, पतिशब्दश्चेत् परो न भवति । घर सामि । अाताविति किम् ? गहबई।" अर्थात् 'गृह' शब्द को 'घर' आदेश हो जाता है, यदि उसके परे 'पति' शब्द न हो तो। यहाँ पर 'गृह' शब्द के अनन्तर 'पति' शब्द नहीं है । इस लिये उक्त 'गृह' को 'घर' आदेश हो गया। ... + क्योंकि जहाँ पर जिसका निवास स्थान है वह उसी स्थान में बसता हुआ माना जाता है, तथा जहां पर रहे वही निवास स्थान उसका होता हैं । जैसे कि पाटलिपुत्र का रहने वाला यदि कारणवशात् कहीं पर चला जाय तब वहाँ पर ऐसा कहा जाता है कि-अमुक पुरुष पाटलिपुत्र का रहने वाला यहाँ पर आया हुआ है । तथा-पाटलिपुत्र में ऐसा कहते हैं-"अब वह यहाँ पर नहीं है अन्यत्र चला गया है ।" भावार्थ यह है कि विशुद्धतर नैगम नय और व्यवहार नय के मत से 'बसते हुए को वसता हुआ' मानते हैं। .
यह नय सामान्यवादी है, इस लिये जव चलनादि क्रियाओं से रहित होकर कोई व्यक्त स्वशय्याम शयन करे तभी उसको वसता हुआ कहा जाता है । यदि घर में ही बसता हुआ माना जाय तो अतिप्रसङ्ग होगा, क्योंकि फिर यह भी मानना होगा कि इसी तरह लोकमें भी रहता है।
___ + अर्थात् संस्तारक में जितने अाकाश प्रदेश उसने अवगाहन किये हों, इस नय से उतने ही प्रमाण में वह बसता हुआ कहा जाता है।
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