________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१३०
[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम होते हैं और (खेत्तयो अणंता लोगा,) क्षेत्र से अनन्त लोक के समान, अर्थात् क्षेत्र को अपेक्षा लोक प्रमाण प्रदेशों के खण्ड की राशि के तुल्य मुक्त औदारिक शरीर हैं इसी लिये 'अनन्ता लोमा' सूत्र रक्खा गया है। अब द्रव्य से प्रमाण कहते हैं(दव्यो) द्रव्य से ( अभवसिद्धिएति) अभव्य सिद्धिक जोवों से (अणंतगुणा,) अनन्त गुण
और ( सिद्धाणं अतभाग। ) सिद्धों के अनन्त भाग में हैं, अर्थात् सिद्ध जीवों की अपेक्षा औदारिक शरीर न्यून हैं।
प्रज्ञापनो सूत्र के तृतीय पद के महादशडक में अभव्य जीवों से सम्यक्त्व पतित अनन्त गुणे माने हैं तो फिर इस अंक को छोड़ कर मुक्त औदारिक शरोरों के लिये अभव्य से अधिक सिद्धों से न्यून ऐसा प्रमाण क्यों दिया ? महादण्डक में ७४ वा अंक अभव्य जीवों का, पचहत्तरवां सम्यक्त्व से पतितों का और ७६ वां सिद्धों का है, अतः मुक्त औदारिक शरीर कमा तो सम्यक्त्व पतितों से अधिक हो जाते हैं और कभी न्यून होते हैं, किन्तु सिद्धों के अनन्त भाग में ही रहते हैं, इसलिये सिहों का अंक ग्रहण किया गया है।
हे भगवन् ! मुक्त श्रोदारक शरीर का अनन्त काल पर्यन्त स्थिर रहना किस प्रकार से मानते हो ? क्या मुक्त शरीर सम्पूर्ण अनन्त काल पर्यन्त रह सकता है वा उसके खंड २ किये हुए परमाणु ग्रहण किये जाते हैं ? आदि पक्ष स्वीकृत नहीं हो सकता, क्योंकि शरीर धारो तो अनन्त काल नहीं रहता, याद द्वितीय पक्ष ग्रहण किया जाय तो अतीत काल में ऐसा कोई परमाणु पुद्गल नहीं रहा जो जीव का अनन्त २ वार औदारिक भाव में परिणमित न हुआ हो ?
ये दोनों ही प्रश्न अग्राह्य हैं, क्योंकि मुक्त औदारिक शरीर उसे कहां हैं जो औदारिक शरीर के अनन्त खंड होने पर भी वे अन्यभाव में परिणमित न हों वहां तक उसको शरीर कहते हैं, जैसे उपचारक नय से “एक देश दाहेपि ग्रामो दग्धः पटो दग्धः” इत्यादि, एक देश मात्र गांव के जलने पर गांव जल गया या पट जल गया ऐसा कहा जाता है, उसी प्रकार जितने खंड औदारिक शरीर के अन्य भावमें परिणमित नहीं हुए वे औदारिक शीर के पुद्गल कह जाते हैं, और एक २ औदारिक शरीर के अनन्त २ खंड होने पर अनन्त भेद होते हैं, अतः अनन्त मुक्त औदारिक शरीर हैं, जो कि अभव्यों से अनन्त गुणं और सिद्धों से अनन्त भाग न्यून हैं। - इस से सिद्ध हुआ कि जिन पुद्गलों ने औदारिक भाव को छोड़ दिया वे पुद्गल अन्यभाव में परिणमित हो गये तब औदारिक शरीर का व्यवच्छेद होना यह
For Private and Personal Use Only