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[ उत्तरार्धम् ]
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भावार्थ - मनुष्यों के दो भेद हैं, संमूर्छिम और गर्भज । वात पित्तादि से उत्पन्न होने वाले को संमूच्छिम और स्त्री के गर्भ से उत्पन्न होने वाले को गर्भज कहते हैं । उनमें से संमूच्छिम तो कदाचिद् नहीं भी होते। क्योंकि इनकी जघन्य स्थिति एक समय की और उत्कृष्ट अन्तर काल- - चौबीस मुहूर्त्त की होता है । कदाचित् वे उत्पन्न हो जांय तो जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त स्थिति के पश्चात् समं का नाश होना संभव । यदि होवें भी तो जघन्य से एक या दो अथवा तीन, और उत्कृष्ट से असंख्यात तक हो सकते हैं । परन्तु गर्भज तो सदा संख्येय ही होते हैं। असंख्येय नहीं होते। जब संमूच्छिम नहीं होते तब जघन्य पदसे गर्भज ही ग्रहण किये जाते हैं, नहीं तो जघन्य पवर्तित्व ही न होता । तथा वे स्वभाव से संख्येय ही होते हैं । इसी कारण उनके बद्ध शरीर भी सं ये हैं । पुनः इस का विशेष वर्णन करते हैं ।
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आठ २ अंक के रूपकों का एक २ यमल पद होता है। इसीको सामयिकी संज्ञा जाननी चाहिये । इन्हीं तीन यमल पदों के समाहार को त्रियमल पद कहते हैं । अर्थात् ८ x ३ = २४ चौवीस अंकोंके स्थान रूपको अथवा सौलह श्रंक की अपेक्षा ऊपर के आठ शंकों को त्रियमल पद कहते हैं । इनका भावार्थ एक ही है । इस लिये यमल पद के ऊपर उक्त गर्भज मनुष्य होते हैं । तात्पर्य यह है कि चोवीस अंकों के बाद अन्य पद वाले गर्भज मनुष्यों की संख्या होती है । पर भी होते हैं ?
या चार से आदि लेकर पांच यमल नहीं होते। क्योंकि चार यमल पहाँ के समाहार समूह को चतुर्थ यमल पद कहते हैं । इसलिये बत्तील अंक रूप अथवा चतुर्थ यमल अर्थात् चौवीस
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क स्थानकों के ऊपर वाले जो अंक रूप हैं उसी को चतुर्थ यमल पद कहना चाहिये | इनका भावार्थ एक हो है । तात्पर्य यह है कि उस चतुर्थ गमल पद के नीचे उनतीस अंक स्थान के, जो आगे कहे जायेंगे, उनमें गर्भज मनुष्यों की संख्या होती है ।
अथवा दो वर्ग जिनका स्वरूप श्रव कहा जायगा, उन ( यमल पदों ) की सामयिकी संज्ञा होती है। इसी तरह तीन यमल पदों के समाहार को त्रियमल पद अर्थात् षट् वर्ग कहते हैं । इसलिये उसके ऊपर तथा चतुर्थ यमल पद अर्थात् ठ वर्ग के नीचे यह मनुष्य संता होती है याने छठे वर्ग के ऊपर
* 'संख्या कोटी कोट्यः' कोटाकोड की संख्या को 'संख्येय' कहते हैं ।
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