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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] (वसं ठाणगुणप्पमाणे) जो लोहेके गोलक सदृश हो उसे वृत्त संस्थान गुण प्रमाण कहते हैं, ( तंससंठाणगुणप्पमाणे ) जो सिंघाड़े के फल के समान त्रिकोण हो उसे व्यंश संस्थान गुण प्रमाण कहते हैं, (चउरंससंठाणगुण प्पमाणे) चतुरस्र संस्थान गुण प्रमाण जो चारों ओर से समकोण हो और (आययसंठाणगुणाप्पमाणे,) दीर्घ स्थान गुणप्रमाण, (से तं संठाणगुणप्पमाणे,) यही संस्थान गुण प्रमाण है, और (से तं अनीवगुणापमाणे ।) यही अजोव गुण प्रमाण है।
भावार्थ-भाव प्रमाण उसे कहते हैं जिसके द्वारा पदार्थों का भली भांति शान हो। उसके तीन भेद हैं, जैसे कि-गुण प्रमाण १, नय प्रमाण २ और संख्या प्रमाण ३।
जिन गुणों से द्रव्यों का बोध हो उसे गुण प्रमाण कहते हैं, अनन्त धर्मात्मक वस्तुओं का एक ही अंश के द्वारा वर्णन करना उसे नय प्रमाण कहते हैं और तीसरा संख्या प्रमाण है (सू० १४६)
गुण प्रमाण के दो भेद हैं, जैसे कि-जीव गुण प्रमाण और अजीव गुण प्रमाण।
अजीव गुण प्रमाण पांच प्रकार का है, जैसे कि-१ वर्ण गुण प्रमाण, २ गंध गुण प्रमाण, ३ रस गुण प्रमाण, ४ स्पर्श गुण प्रमाण और ५ संस्थान गुण प्रमाण।
वर्ण गुण प्रमाण पांच प्रकार से प्रतिपादन किया गया है। जैसे किकृष्णवर्ण गुण प्रमाण से लेकर शुक्लवर्ण गुण प्रमाण तक ।
गंध गुण प्रमाण के दो भेद है, सुरभिगंध गुण प्रमाण और दुरभिगंध गुण प्रमाण ।
रस गुण प्रमाण पांच प्रकार का है, जैसे कि तिक्तरस गुण प्रमाण, २ कटुकरस गुण प्रमाण, ३ कषायरस गुण प्रमाण, ४ आचाम्लरस गुण प्रमाण और मधुररस गुण प्रमाण ५।
स्पर्श गुण प्रमाण के आठ भेद हैं । जैसे कि-कर्कशस्पर्श गुण प्रमाण, इसी प्रकार मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध, कत, ये स्पर्श गुण प्रमाण होते हैं
संस्थान गुण प्रमाण के पाँच भेद हैं जैसे कि १ परिमण्डल संस्थान गुण प्रमाण, २ वृत्त संस्थान गुण प्रमाण, ३ त्र्यंस संस्थान गुण प्रमाण, ४ चतुरस्त्र संस्थान गुण प्रमाण और ५ दीर्घ संस्थान गुण प्रमाण ।
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