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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] निर्णय करना, उसे अनागत काल ग्रहण कहते हैं, जैसे कि-(अम्भस्स निम्मलतं, कसिणा य गिरी सविज्जुश्रा मेहा ।) निर्मल आकाश में काले रंग के पहाड़ जैसे बिजली सहित मेघों की- थणियं वा उम्भायो, संझा रत्ता पणिट्ठा य ॥१॥ ) गर्जना तथा अनुकूल हवा और सन्ध्या का लालपन ॥१॥ तथा-(वारुणं वा) वरुण के + नक्षत्र या (महिदं वा) * महेन्द्र के नक्षत्र अथवा ( अन्नयरं वा पसत्यमुपायं) अन्य कोई प्रशस्त उत्पोत-उल्का पात या दिग्दाहादि को (पासित्ता ) देख कर (तेणं साहिजइ,) उस से अनुमान किया जाता है (जहा ) जैसे कि-' सुवुट्ठी भविस्सइ,) * अच्छी वृष्टि होगी, ( से तं श्रणागय. कालगहणं । ) इसे x अनागत काल ग्रहण विशेषदृष्टसाधर्म्यवद् अनुमान जानना चाहिये ।
(एएसिं *चेव विवज'से इनका विपरीत भी (तिविहं गहणं भवइ,) ग्रहण तीन प्रकार से होला है, 'तं जहा.) जैसे कि-- अतीयकालगहणं) अतीत काल प्रहण पटुप्पनकालगहणं) वर्तमान काल ग्रहण और ( अणा स्यकालाहणं । ) अनागत-भविष्यत्काल ग्रहण।
(से किं तं अतीयकाजगहणं ? ) अतोत काल ग्रहण किसे कहते हैं ? (अतीयकाल गहणं) अतीत काल के पदार्थों को वर्तमान में अनुमान के द्वारा निर्णय करना उसे अतीत काल ग्रहण कहते हैं, जैसे कि-(नित्तिणाई वणाई) बिना घासके जंगल (अणिप्फ एणसस्सं वा मेइणी) अथवा पृथिवी में धान्य वगैरह न पैदा हुए हों, (सुक्काणि अ कुडसरणईदीहिअतहागाई) और सूखे हुए कुण्ड सरोवर नदो दीर्घाकार जलाशय तालाव आदि को ( पासित्ता ) देख कर (तेणं साहिजड) उससे अनुमान किया जाता है, (जहां-) जैसे कि-(कुवुट्ठीग्रासी,)* कुवृष्टि-खराब बर्षा हुई है, (से तं अतीयकालगहणं ।) यही अतीत काल प्रहण है।
न पूर्वाषाढ़ा १, उत्तराभाद्रपद २, आश्लेषा ३, पार्दा ४, मूल ५, रेवती ६, और शतभिः ।
अनुराधा १, अभिजित २, ज्येष्ठा ३, उत्तराषाढ़ा ४, धनिष्ठा ५,रोहिण ६, श्रवणी । · + यहां 'सुदृष्टि होगी', यह पक्ष वचन; श्राकाश का निर्मलपना इत्यादि, हेतु; और "जैते भागे हुई थी", यह दृष्टान्त है।
* 'चेव' निपात है और यहां पर वाक्यालंकार में पाया हुआ हैं ।
x पूर्वोक्त तृणादि कुदृष्टि के कारणों की अपेक्षा विपरीत प्रतिपादन करनेसे कुदृष्टि श्रादि का बोध होता है। और इसके भी पक्ष, हेतु, उदाहरण प्रादि यथासंभव पूर्व से विपरीत कल्पित कर लेना चाहिये।
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