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[ उत्तराधम् ]
१८५ (से किं तं पडुप्पएणकालगहणं ? वर्तमान काल ग्रहण किसे कहते हैं ? (पडुप्पबाजाहणं प्रहण किये हुए पदार्थों को अनुमान के द्वारा वर्तमान काल में निर्णय करना उसे प्रत्युत्पन्न-वर्तमान काल ग्रहण कहते हैं, जैसे कि--( साहुं गोअरण) -गोचरो गये हुए माधु को (भिक्खं अलभभाए) भना.नहीं मिलते हुए (पासित्ता) देख कर (तेगां सादिजइ) उस से अनुमान किया जाता है, जहा.) जैसे कि-(भिक्खे बट्टइ,) दुर्भिक्ष वर्त रहा है, (से तं पटुप्पएणकालाहां।) अतः यहा प्रत्युत्पन्न काल प्रहण है ।
(से किं तं.अणागपकालगहणं ?) अनागत काल ग्रहण किसे कहते हैं ? (अणागय कालग्रहणं) अनागत काल ग्रहण उसे कहते हैं, जैसे कि-(यूमायंति दिसाओ, संविअमेरणी अपडिवता । वाग नेरइया खलु. कुखुट्टामेवं निवेयोत ॥१॥) धूम युक्त दिशाओं के देखने से, पृथिवा का सिग्धपना न होने से, नैऋत कोग को हवा होने से, निश्चय हो कुवृष्टि के लक्षण प्रतीत होते हैं ।।१॥
(अग्गयं वा) अथवा आग्नेय भराइल के नक्षत्र * हो (वायचं वा) या वायव्य मण्डन के नक्षत्र हों (अए एयर वा अप्पत्य उपाय) या अन्य काई खराब उत्पाद हो, उस को (पासित्ता) देख कर (ते पाहिजइ,) उस से अनुमान किया जाता है, (जहा.) जैसे कि-कुधुट्ठी भविस्सइ) खराब बर्षा होमी, (से तं पणागयकालगहणं ।) यही अना. गत काल प्रहण जानना चाहिये । ( स तं वितसदि,) यही विशेषदृष्ट है, (से तं दिसाहमित्रं,) यही दृष्टसाधम्यवत् और (से तं अणुनाणे ।) यही अनुमान प्रमाण है ।
भावार्थ-उक्त सामान्य रूप अनुमान द्वारा तीनों काल के पदार्थों का बोध होता है, जैसे कि वन में तृण विशेष उत्पन्न हुए हैं, अथवा पृथ्वी में धान्यों की निष्पत्ति अतीव हु ईहै, या सभी जलाशय जलसे परिपूर्ण हैं, इत्यादिकों के देखने से अनुमान होता है कि यहां पर सुवृष्टि हुई है, यह भूत काल के पदार्थों का ज्ञान है। इसी को अतीत काल ग्रहण अनुमान कहते हैं।
वर्तमान काल के पदार्थों के लिये यह उदाहरण है, जैसे कि-पोचरी गये
* विशाखा १, भरणी २, पुष्य ३, पूर्वाफाल्गुनी ४, पूर्वाभाद्रपद् ४, मघा ६, और कृत्तिका ७।
+चित्रा १, हस्त २, अश्विनी ३, स्वाति ४, मार्गशीर्ष ५, पुनर्वसु ६, और उतरण २.फाल्गुनी.५।
यहां पर भी पक्ष, हेतु और दृष्टान्त यथासम्भव पूर्ववत् घटा लेना चाहिये ।
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