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[ उत्तरार्धम् ]
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इस प्रकार ये सभी अजीव गुण प्रमाण के भेद हैं। इसके अनन्तर जीव गुण प्रमाण का स्वरूप निम्न प्रकार जानना चाहिये
जीव गुण प्रमाण ।
से किं तं जीवगुणप्पमाणे ? तिविहे पण्णत्त े, तं जहा गाणगुणष्पमाणे दंसणगुणत्पमाणे चरितगुणप्पमाणे । से किं तं गाणगुणष्पमाणे ? चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - पञ्चकखे अणुमाणे श्रवम्मे आगमे ।
से किं तं पञ्चकवे ? दुबिहे पराणते, तं जहा - इंदिय पञ्चकखे अ गोइंदियपच्चक वे अ ।
से किं तं इंदियपच्चक्खे ? पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा सोइंदियपञ्चकले चक्खुरिंदयपच्चक्त्रे घाणिंदियपच्चक्खे जिब्भिदियपच्चक्खे फासिंदियपच्चक्खे, से तं इंदियपच्चक्खे |
से किं तं गोइंदियपच्चक्खे ? तिविहे पण्णत्ते, तं जहा श्रहिणां पच्चवखे मरणपज्जवणारणपच्चक्खे केवलणारण पच्चक्खे, से तं गोइंदियपच्चक्खे, से तं पच्चक्खे |
पदार्थ - (से किं तं जीवगुणप्पमाणे ?) जीव गुण प्रमाण किसे कहते हैं, और वह कितने प्रकार का है ? (जीवगुण माणे ) ज्ञानादि गुणों के द्वारा जसकी सिद्धि हो उसे जीव गुण प्रमाण कहते हैं और वह (निविहे पण ते ) तीन प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा-) जैसे कि - ( या सगुणप्पमाणे) ज्ञान गुण प्रमाण ( दंसणगुण(मा) दर्शन गुण प्रमाण और (चरितगुणप्पमाये ।) चारित्र गुण प्रमाण ।
(से किं तं गाणगुणष्पमाणे ?) ज्ञान गुण प्रमारण किसे कहते हैं और वह कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? (गाणगुण प्यमाणे ) जिसके द्वारा जीव की सिद्धि हो उसे ज्ञान गुण प्रमाण कहते हैं, और वह (चत्रि परते,) चार प्रकार से प्रति
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