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[उत्तरार्धम् ] जूरादि को, केसर से सिंह का, स्कन्ध से वृषभ का, भुजाओं की चूड़ियों से स्त्री का, राज्य चिन्ह से सुभट का, का, एक सिक्त-दाने से चावल और एक गाथा से कवि की शान होता है।
साधन से साध्य का अर्थात् आश्रय से आश्रियी का ज्ञान हो उसे श्राश्रयानुमान कहते हैं । जैसे कि-धूएं से अग्नि का, बादलों से जल का, आसमान के विकारों से वृष्टि का, शीलोदि सदाचरण से कुलवान पुत्र का, भाषण करने से.या अंग की, चेष्टाओं से और नेत्र तथा मुख के विकार से मन का ज्ञान होता है।
दृष्टसाधर्म्यवत् के दो भेद हैं, जैसे कि-सामान्यदृष्ट और विशेषदृष्ट ।
जैसे कि-श्रागन्तुक के देखने से किसी पुरुष को अनुमान से निश्चय हुआ कि अन्य भी बहुत से मनुष्य इस आकृति वाले होंगे, तथा- जैले बहुत से मनुष्यों का शान हुआ तब एक का भी अनुमान किया जा सकता है। इसी प्रकार कार्षापण का भी भावार्थ जानना चाहिये।
विशेषदृष्ट उसे कहते हैं, जैसे कि-किसी पुरुष ने किसी व्यक्ति को पहिले किसी स्थान पर देखा था, फिर वह किसी समाज के बीच दिखलाई दिया, तब अनुमान किया कि मैं ने इस को कहीं पर देखा है । इस प्रकार स्मृति करते हुए अच्छी तरह निश्चय होगया कि मैं ने इसको अनुक स्थान पर देखा था। इसलिये इसी को विशेषदृष्ट अनुमान कहते हैं । इसी प्रकार कार्षापण का भी उदाहरण जानना चाहिये।
तस्स समासो तिविहं गहणं भवइ, तं जहा-अतीयकालगहणं पडुप्पण्णकोलगहणं अणागयकालगहणं ।
से किं तं अतीयकालगहणं ? उत्तणाणि वणाणि निप्फराणसव्वसस्संवा मेइणि पुण्णाणि य कुडसरणईदीहिआतडागाइं पासित्ता तेणं साहिजइ, जहा सुवुट्ठी
आसी, से तं अतीयकालगहणं । - से किं तं पडुप्पण्णकालगहणं ? साहुं गोयरग्गगयं विच्छडिडयपउरभत्तपाणं पासित्ता तेणं साहिजइ,जहा
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