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[ उत्तरार्धम् ] इस यंत्र की शुद्धि के लिये नीचे का यंत्र देखिये
ऊपर दी हुई संख्या को कोडाकोड अथवा और किसी उपाय से नहीं गिन सकते । इस लिये अन्तिम अंक से प्रारम्भ कर शुरू के अंक तक बतलाने के लिये ये दो गाथायें दी जाती है
"छत्तिन्नि तिनि सुन्नं, पंचेव य नव य तिन्नि चत्तारि । पंचेव तिषिण नव पंच सत्त तिन्नेव तिन्नेव ॥ १॥ चउ छ हो चउ एक्को, पण दो छकेकगो य अट्ठव । दो दो नव सत्तेव य, अंकट्ठाणा पण्हुत्ता ॥ २॥" भावार्थ सरल है।
इसलिये यह सिद्ध हुआ कि इन उनतीस अंक वाले रूप में जघन्य पद वाले गर्भज मनुष्य होते हैं।
अब अन्य प्रकार से इसका वर्णन किया जाता है
सब से प्रथम राशि को अर्द्ध करना चाहिये । पश्चात् उस अर्द्ध का भी अर्द्ध करना चाहिये। फिर इसका भी अर्द्ध करना चाहिये । इस अनुक्रम से करते करते यहां तक करना कि जिससे उसके छयानवे हिस्से हो जायें, और अन्त में परिपूर्ण एक रूप रहे, खंडित रूप न हो । उस राशि से गर्भज मनुष्यों की संख्या जाननी चाहिये । वह राशि यही है, अर्थात् जिसके पूर्व उनतीस अंक स्थानक निष्पन्न हुए हो, अन्य कोई राशि नहीं है । इस राशि को छेदन करते हुए-आधी
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