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[ उत्तरार्धम]
१४३ कार्मण शरीर भी पूर्ववत् जानना । अतः वायुकायके औदारिक शरीर तो पृथ्वीकायके तुल्य ही हैं, लेकिन वैक्रिय शरीर क्षेत्र पल्योपम के असंख्येय भाग में होते हैं, मुक्त पूर्ववत् ही है । श्राहारक शरीरोंका, जैसे पृथ्वीकायके वैक्रिय शरीरों का स्वरूप है उसी प्रकार जानना चाहिये । तैजस और कार्मण शरीरों का वर्णन पृथ्वीकाय के शरीरोंके सदृश जानना चाहिये । तथा बनस्पतिकाय के औदारिक, वैक्रिय, और आहारक शरीर पृथ्वीकायके जीवों के शरीरो के तुल्य हैं, और तैजस कार्मण शरीरों का स्वरूप औधिक के अनुसार जानना चाहिये, इस प्रकार पांच स्थावरों के शरीरों की व्याख्या सम्पूर्ण हुई । अब विकलेन्द्रिय जीवों के शरीरों का वर्णन किया जाता है -
किकलन्द्रियादि के ज्ञारीर ।
बेइंदियाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पएणत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तंजहा बद्देल्लया य मुकल्लया य, तत्थ णं जे ते बदल्लया तेणं असंखिज्जा असंखिज्जाहिं उस्सप्पिणीअोसप्पिणीहि अवहीरंति कालो, खेत्तो असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखिज्जइभागो, तासिणं सेढीणं विक्खंभसूई असंखेजाओ जोअणकोडाकोडोओ असंखिजाई सेढीवग्गमूलाई बेइंदियाण ओरालियबदल्लएहिं पयरं अवहीरइ असंखेजाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं कालओ खेत्तओ अंगुलपयरस्स श्रावलियाए असंखेजह. भारपडिभागेणं, मुक्केल्लया जहा ओहिओ ओरलिप्र. सरीरो तहा भाणियव्वा, वेउव्यिाहारगसरीरा बद्ध. ल्लया नत्थि, मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा भाणि अव्वा, तेयगकम्मसरीरा जहा एएसिं चेव ओरालिअसरीरा तहा भाणियव्या, जहा बेइंदियाणं तहा तेइंदियचउरिदियाणवि भाणियब्धा । पंचेंदियतिरिक्ख
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