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[उत्तरार्धम्]
१५१ दुविहा परणत्ता,) हे गौतम ! दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तंजहा-) जैसे कि(बदल्लया य) बद्ध और (मुकल्लया य, ) मुक्त, (तत्थ णं जे ते बदल्लया) फिर उन में जो वे बद्ध शरीर हैं, (तेणं सिय संखेजा) वे कदाचित् ‘ख्येय हों और (सिय असंखेजा,) कदाचित् असंख्यय भी हों, इसका प्रमाण यह है कि (जहन्नपए संखे जा,) जघन्य पद से वे संख्येय हैं, क्योंकि--( संखेजायो ) संख्यय (कोडाकोडीग्रो) कोटाकोटि प्रमाण है, अथवा (एणुणतीसं ठाणाई) २६ अंक स्थान प्रमाण जघन्य पद वाले मनुष्य होते हैं (तिजमलपयस्स उवरिं ) तीन * यमल पद के ऊपर और ( चउ जमलपयस्स हेटा, ) चार यमल पद के नीचे, (अहव णं) अथवा (छरणइछेवणागदायिरासी) ९६ छेदनकदायी राशि, (उकोसपए) उत्कृष्ट पद से ( असंखेजा, ) असंख्यय हैं, (असंखे जाहिं) असंख्येय (उस्स. प्पिणीयोसप्पिणीहिं) उत्सर्पिणी और अवसपिणियों के ( अबहीरंति कालो) काल से अपहरण किये जाते हैं, (खे तो) क्षेत्र से (उकोसेणं स्वपक्खित्तेहिं मणुस्सेहिं) उत्कृष्ट एक मनुष्य के रूप प्रक्षेप करने से ( सेढी अवहीरइ ) श्रोणि अपहरण हो जाती है [ताप्तिणं सेढीए) उन श्रेणियों का (कालखेत्तो, काल और क्षेत्र से (बहारो मरिजा,) अपहरण किया जाया जाता है, जैसे कि- कालो) काल से (असंखिज्जाहि) असंख्येय (उस्सप्पिणीश्रोसप्पिणोहि) उत्सर्पिणी और अवसर्पिणियों से, (खेत्तो) क्षेत्र से (अंगुलपढमवगमूलं) अंगुल प्रमाण क्षेत्र के प्रथम वर्ग मूल को तइयवग्गमूलाडुप्परणं,) तीसरे वर्ग मूल के साथ x गुणा करने से, तथा (मुकल्लया) मुक्त औदारिक शरीर (जहा) जैसे (ोहिया ओरालिया ) औदारिक शरीर होते हैं ( तहा भाग्णियव्या, ) उसी प्रकार कहना चाहिये । ( मणुस्साणं भंते ! ) हे भगवन् ! मनुष्यों के ( केवइया वेउब्वियसरीरा पएणत्ता ? ) कितनी तरह के वैक्रिय शरीर प्रतपादन किये गये है ? (गोयमा ! दुविहा पएणत्ता,) हे गौतम ! दो प्रकार से प्रतिपादन किये गये हैं, (तंजहा )जैसे कि-(बद्ध ल्लया य) बद्ध और (मुकल्लया य,) मुक्त, ( तत्थ णं जे ते ) उन में वे (बदल्लया) बद्ध वैक्रिय शरीर हैं (ते एवं संखिज्जा) वे संख्येय हैं और उनका (समए २ अबहीरमाणा २) समय २ में अपहरण करने से (संखेजणं कालेणं) संख्यय कालसे (अवहीरंति) अपहरण
+ जिस समय संमृच्छिमों का अन्तर काल होता है उसी समय मनुष्य संख्येयक पद वाखे होते हैं, अन्य काल में नहीं होते ।
क्रोड की संख्या को कोड से गुणा करने पर कोटाकोटि होते हैं । + पाठ २ अंकों का एक यमल पद होता है ।
x पहिले और तीसरे वर्ग के साथ गुणा करने पर जी संख्या प्राप्त हो उतनी ही वह शरीर, गर्भज और संच्छिम मनुष्यों की संख्या होती है ।
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