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[ उत्तरार्धम् ।
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निगोद के जीवों का शरीर हस्वतर और समुद्र के नाल के जीवों का शरीर दीर्घतर होता है | ये पांच प्रकार के शरीर चतुर्विंशति दंडकों में भी पाये जाते हैं- जैसे कि चारों नरकों के नारिकियों के और दश प्रकार के भवन पतिदेवों के केवल वैक्रिय तेजस और कार्मण्य, ये तीन शरीर होते हैं, तथा पृथ्वीकाय,
काय, तेजसकाय, वनस्पतिकाय और विकलेन्द्रिय इनके श्रदारिक तैजस और कार्मण्य ये तीन शरीर होते हैं, अपितु वायुकाय और पंचै० तिर्यच्चों के श्रदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण्य ये चार शरीर होते हैं, तथा - मनुष्यों
दारिक, वैकिय आहारक तेजस् और कार्मण्य ये पांच शरीर होते हैं, और व्यन्तर ज्योतिषी वैमानिक देवों के वैकिय, तेजस और कार्मण्य ये तीन शरीर होते हैं । अब प्रत्येक २ शरीर के बद्ध और मुक्त भेद सविस्तर निम्न लिखित जानना चाहिये
बद्ध और मुफ्त के भेद |
केवइयाणं भते ! ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गो. यमा दुविहा पणत्ता, तंजहा - बल्लया य मुक्क ेललगाय, पत्थणं जे ते बद्धल्लगा तेणं असंखेजा असं खिजाहि उस्सप्पिणीसप्पिणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तत्रो असंखज्जा लोगा, तत्थ ां जे ते मुक्केल्लगा ते अता
ताहि उ. सप्पिणीसविणहि अवहीरंति कालत्री, खत अता लोगा, दव्वत्र, अभवसिद्धिएहि प्रांतगुणा सिद्धाणं असंतभागो । केवइयाणं भंत े ! वेडव्त्रियसरीरा परणता ? गोयमा दुविहा पण्णत्ता त जहा- बद्धलगाय मुक्केल्ल गाय, तत्थ गं जे ते बद्धल्लगा तेणं असंखिज्जा असं खिज्जा हि उस्सप्पिणीओसप्पिणीहि वही रंति काल खत्तओ असंखज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखज्जइभागो, तत्थ गं जे तो मुक्केलया तण अांता
* 'कइ विहा' प० ।
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