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[ उत्तरार्धम् ] असंखिज्जा अता ? गोयमा । श्रसंखेज्जा नेरइया असं
खेज्जा असुरकुमारी जाव असंखेज्जा थणियकुमारा
असंखेज्जा पुढवोकाइया जाव असंखेजा वाउकाइया अरांता वसइकाइया असंखेज्जा बेइंदिया असंखेज्जा तेईदिया असंखेज्जा चउरिंदिया असंखेज्जा पंचिदियतिरिक्खजोशिया असंखेज्जा मगुस्सा असंखेज्जा वाणमंतरा असंखिज्जा जोइसिया असं बेज्जा बेमाणिया अांता सिद्धा, से तेऽट्टेग गोयमा ! एवं बुच्चइ-नो संखिज्जा नो असंखिजा अता ( सू० १४४ )
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पदार्थ - (कहां भंते ! दवा पणता ?) हे भगवन् ! द्रव्य कितने प्रकार के प्रतिपादन किये गये हैं ? ( गोवमा ! दुहि पड़ता, जहा-) हे गौतम! दो प्रकार से प्रतिपादन किये गये हैं, जैसे कि - (जीवदत्राय अजीवदन्या य) जीव द्रव्य और अजीव द्रव्य । (वाणं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! अजोव द्रव्य कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? ( गोयमा ! दुबिहा परणचा तंजहा - ) हे गौतम ! दो प्रकार से वर्णन किया गया है, जैसे कि - ( स्त्रीजीवदत्राय अरूवी जीवदव्वा य । ) रूपी अजीव द्रव्य और अरूपी अजीव द्रव्य । (स्वी जीवदव्वाणं भंते ! कइविहा पत्ता ? ) हे भगवन्! रुवी जीव द्रव्य कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? (गोवमा ! दस विहा पत्ता, जहा-) हे गौतम! दस प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, जैसे कि(चम्मका) † संग्रह नय के अभिप्राय से धर्मास्तिकाय एक द्रव्य है, किन्तु व्यवहार नय से (सा) धर्मास्तिकाय के देश और (मस्थिकायस्स पसा) धमस्तिकाय के प्रदेश भी हैं, लेकिन ऋजुसूत्र नय के अभिप्राय से ये सभी पृथक् २ हैं ।
*'गाणं प्र० ।
+ 'एकोऽपि धर्मास्तिकाय नयनाभियते तच्चह नयाभिप्रायादेक एव स्तिकाय: पुत्रकपदार्थः, व्यवहारनाभित्रायात्तु वुद्धिपरिकल्पितो द्विभागविभागादिस्तस्यैव देशाः, यथा सम्पूर्ण धनास्तिकारी जीवादित्युपटम्भकं द्रव्यनिष्यते, एवं तद्ददेशा अतिदुष्टम्भकानि पृथगेव दव्याधीतिभियतस्तु स्वकीयस्वकीवसानयेन जीवादित्युपष्टम् व्यामि यमाणास्तस्य प्रदेशा बुद्धिरिता विभागाभावाः प्रथमेव द्रव्याणि ।'
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