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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम] इसी तरह (अधम्मस्थिकाए) अधर्मास्तिकाय में (अधम्मत्थिकायस्य देसा) अधर्मास्तिकाय के देश और (अधम्मत्थिकायम्स पएसा) अधर्मास्तिकाय के निविभाग प्रदेश, फिर ( श्रागासत्यिकाए) आकाशास्तिकाय में (अागास िथकायम्स देसा) आकोशास्तिकाय के देश और (अागासत्यिकायस्स पए सा,) आकाशास्ति काय के प्रदेश, तथा- (ऋद्धा समए ।) दसवां काल द्रव्य, यह । निश्चय नय मत के अभिप्राय से एक ही है, क्योंकि वर्तमान समय की अपेक्षा यह नय भूत और भविष्यत् काल के समय को अंगीकार नहीं करता, क्योंकि भूत काल के समय विनष्ट हैं और भविष्यत काल के अनुत्पन्न हैं इसलिये वर्तमान के ही समय सद्रूप हैं । अतः इसकी अपेक्षा काल द्रव्य एक है, इस तरह अरूपी जीव द्रव्य के कुल दस भेद हुए, अब रूपी अजीव द्रव्य का वर्णन करते हैं-(स्वीअजीबदव्वाणं भंते ! काविहा पण्णता ?) हे भगवन् ! रूपी अजीव द्रव्य कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? (गोयमा ! चयिहा पण्णता, तंजहा.) हे गौतम ! चार प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, जैसे कि-(बंधा खंधदेसा) अनन्त परमाणु रूप स्कन्ध और उसके विभाग रूप देश, तथा--(पए सा परमाणुपोग्गला, ) देश का विभाग रूप प्रदेश और केवल निरंश भाग रूप परमाणु पुद्गल होते हैं, ( तेणं भंते ! किं संखिजा ) हे भगवन् ! क्या घे रूपी अजीव द्रव्य संख्यात हैं या ( असंखेज्जा) असंख्यात हैं या । अगता ? ) अनंत हैं ? ( गोयमा ! ना रुखेजा नो असंखेजा अता,) हे गौतम न वे संख्यात हैं न व असंख्यात हैं किन्तु अनंत हैं, (स फेण?णं भंते ! एवं बुच्चइ-) हे भगवन् ! ऐसा कहने का क्या अर्थ है कि-(नो मंखिजा) न तो वे सख्यात हैं, ( नो असंखि जा ) न असंख्यात हैं, किन्तु ( अणता ?) अनंत हैं ? (गोयमा ! अणता परमाणुपांगला ) हे गौतम ! परमाणु पुद्गल अनंत हैं तथा (अगांता दुपएसिया संघा) द्विप्रादेशिक स्कंध अनंत है (व [६स ५९सिसा खंका, यावत् [श प्रा. देशिक स्कंध भी अनंत हैं) और (संखिज परसिया) संख्यात प्रादेशिक स्कंध मी अनंत हैं (असंखेज पएसिया)] असंख्यात प्रादेशिक स्कंध भी अनंत है] और (अणता प्रतिपातिया खंधा,) अनंत प्रादेशिक स्कंध भी अनंत है, से तण गायमा ! एवं युच्चइ-) इसलिये हे गौतम ! वह ऐसा कहा जाता है कि-(नो संखिजा ना असंखिज्जा) न व संख्यात हैं न वे असंख्यात हैं, किन्तु (अगता ।) अनंत है। (जावदव्यागा भंत ! कि संग्वजा नायखज्ज अणता ?) हे भगवन् ! क्या जीव द्रव्य संख्यात है अथवा असंख्यात हैं वा अनंत हैं ? (गायमा ! नो संखजा नो असखिया अणता,) हे गौतम ! वे न तो संख्यात हैं और न
+ 'वर्तमानकालसमयस्यैव एकस्य सत्वादतीतानागतयोस्तु निश्चयनयमतेन विनष्टनानुत्पत्रमा यामसवाद्।'
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