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[ उत्तरार्धम् ] जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं अड्डाइज्जाइ धणसयाई; उत्तरवेउव्विया जहणणेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं पंच धणुसयाई (६) तमतमाए पुढवीए णेरइयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पराणत्ता. तं जहा- भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तस्थ णं जा सा भवधारणि जा सा जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं पंच घणसयाइं; तत्थ णं जा सा उत्तरवेउव्जिा सा जहणणेणं अंगुलस्स र खेज्जइभाग, उक्कोसेणं धणुसहरसाइ (७)
पदार्थ-(रयणप्पहाए पुढवीए शेर इयाणं भंते ! के महालिया सीरीगाहरणा परणता ? गोयना ! दुविहा पएणत्ता, तं जहा-भववारणिज्जा य उत्तरवेब्धिया य) रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकियों को हे भगवन् ! कितनी बड़ी अवगाहना है ? हे गौतम ! रत्नप्रभा के नारकियों के शरीरों को अवगाहना दो प्रकार की वर्णन की गई है । एक तो भवधारणीया, द्वितीय उत्तरवैक्रिया (तत्थ णं जा सा भवधारणिज्हा सा जहएणणं अंगुलरस अरखेजइभान, कोसणं सत्त - धण्इं तिारण रयणीनो छच्च अंगुलाई) उन दोनों में जो भवधारणीया है, वह जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण होती है; उत्कृष्ट अवगाहना ७ धनुष , ३ हाथ और ६ अंगुल प्रमाण होती है ( तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्बिया सा जहणोणं अंगुलस्स संखेज्जइभार्ग, उचीसेणं परणास धणूई दोषिण रयणीग्रो बारस गुलाई ) उन दोनों में जो उत्तरवैक्रिया है वह जघन्य अंगुल के संख्यातभाग प्रमाण होती है; उत्कृष्ट १५धनुष, २ हाथ और १२ अंगुल प्रमाण है ॥१॥ ( सकरप्पहाए पुढवीए णे इत्राणं भंते ! के महानिका सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेविसा य ) हे भगवन् ! शर्कराप्रभा नाम की पृथ्वीके नारकियों की शरीरावगाहना कितनी बड़ी है ? हे गौतम ! वह दो प्रकार से बतलाई गई है। जैसे कि-एक कवधारणोया और दूसरी उत्तरवैक्रिया। (तत्थ णं जा सा भवघारणिज्जा सा जहएणणं अंगुलस्स संखेजइभाग, उकोसेग पएणरत घण्डं दुरिण रयणीश्रो वारस अंगुलाई ) उनमें से जो भवधारणीया अवगाहना है, वह जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भागांप्रमाण है और उत्कृष्ट १५ धनुप् , २ हाथ और १२ अंगुल-प्रमाण है । (तयां जा सा उत्तर या सा जहां अंगुलस्स संखेजहभाग,
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