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[ उत्तराधम् ] इन व्यावहारिक अद्धा पल्योपम और सागरोपम के कथन करने का क्या प्रयोजन है ? (ए एहिं ववहारियग्रहापलिग्रोवमसागरोवमेहिं नयि किंचिप्पोयण', केवलं पण्णवणाकिजइ.) इन व्यावहारिक श्रद्धापल्योपम और सागरोपम के कथन करने का किंचिन्मात्र भी प्रयोजन नहीं है, केवल सुखावबोध के वास्ते प्ररूपणा मात्र हो कथन किया गया है, (से तं ववहारिए अहापलिअोवमे ।) वही पूर्वोक्त व्यावहारिक अद्धा पल्योपम है । (से कि तं सुहुमे श्रद्धापलिश्रोवमे ? २ से जहानामए) सूक्ष्म अद्धापल्योपम किसे कहते हैं ? जैसे कि-(पल्ले सिया) प्राग् कथित पल्य हो, और वह (जोयण पायामविखंभेण जोयण उड्ड उच्चत्तेण,) योजन प्रमाण दीर्घ और विस्तार पूर्वक हो, अपितु योजन प्रमाण ऊर्ध्व भो हो तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं) और उसको परिधि तीन गुणीसे कुछ विशेष भो हो, (से णं पल्ले एगाहिएवेाहियतेप्राहिय जाव भरिए वालाग्गकोटीणं, फिर वह पल्य एक दिन, दो दिन, तीन दिन, यावत् सात् दिनतक के उत्पन्न हुए २ वालाग्रोसे भर दिया गया हो अथवा बालानों की कोटियों से घन रूप भी होगया हो, (तत्थण) फिर (एममेगे वालग्गे असंखेज्जाई खंडाई कजइ, एक २ बालान के असंख्यात खंड किये जायँ, फिर (ते णं वालाग्गा दिट्ठीप्रोगाहणारे असंखेजइभागमेत्ता) वे बालाग्र दृष्टि को अवगाहना से असंख्यात भाग मात्र हो, किन्तु (सुहुमरस पण गजीवस्स सरीरांगाहणाग्रो असंखेज गुणा,) सूक्ष्म पनक जोव के शरीर की अवगाहना से असंख्येय गुणाधिक कल्पित कर लिये जायें, (तेण वालग्गा नो अग्गी डजा) फिर उन बालानों को अग्नि भी दाह न कर सके, (जाव नो पलिविद्वसिज्जा) यावत् वे विध्वंस भो न हों (ना पू,त्ताए हव्यमा गच्छेजा,) और न ही वे दुर्गन्धता को प्राप्त हों, (ततीण वाससए २ एमेगं बाल अवहाय) फिर उन में से सौ सौ वष के पश्चात् एक एक बालाग्र अपहरण किया जाय तो (जावइएण कालेण से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निटिए भवइ, से तं सुहुमे ढापलिग्रोवमो ।) फिर वह पल्य जितने काल में क्षीण, निरज, निलेप और निष्टितार्थ हो जाय, उसको कसूक्ष्म अद्धा पल्योपम कहते हैं, फिर
(एएसिं पल्लाण कोडाकोडि भवेज दस गुणिया । )
(तं सुहुमस्स श्रद्धासागरोवमस्स एगस्स भवे परिमाण ॥१॥) इन अद्धापल्योपमों को दश कोटाकोटि गुणा करने से एक सूक्ष्म अद्धासागरोपम का परिमाण होता है। (एएहिं सुहुमेहिं अदापलिअोवमसागरोवमेहि किं पोयण ?) इन सूक्ष्म श्रद्धापल्योपम और सागरोपमों के कथन करने का क्या प्रयोजन है ? (एएहिं सुहुभेहि
*'नवरमुद्दारकालस्येह वर्षशतमानत्वाद्यावहारिकपल्योपमे सङ्ख्येया वर्षकोत्योऽवसेयाः. सूचमपल्योपमे त्वसङ्ख्येया' इति ।
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