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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् । उरपरि सर्प और भुजपरिसों को उत्कृष्ट क्रोड २ पूर्व वर्ष की और पक्षियों को एक पल्योपम के असंख्यात भाग प्रमाण होतो है ॥ २ ॥ इन को संग्रहणी गाथा कहते हैं, अर्थात् संग्रह करके सर्व आयु वर्णन की गई है।
भावार्थ--अाकाश में उड़ने वाले पक्षियों की जघन्य अायु अंतर्मुहर्त की होती है लेकिन अंतर्वीपों की अपेक्षा से उत्कृष्ट प्राय एक पल्योपम के असंख्या. तभाग प्रमाण होती है, तथा सर्व प्रकार के अपर्यापतों की श्रायु केवल अंतर्मुहुर्त की ही प्रति पादन को गई है। समूछिम और गर्भज पक्षियों की स्थिति निम्न प्रकार से जानना चाहियेसंमूछिम पक्षियों की जघन्यस्थिति उत्कृष्ट स्थिति
अन्तर्मुहूर्त बहत्तर हज़ार वर्ष गर्भज पक्षियों की अन्तर्मुहर्त पल्यपमो का असंख्यात.
इनकी उत्कृष्ट आयु ग्रहण करते वख्त अपर्याप्त काल को पृथक् कर देना चाहिये । तथा उक्त संग्रहणी गाथाओं का सार संक्षप से यह है कि . समूछिम जलचरों की उत्कृष्ट श्रायु पूर्व कोड वर्ष, स्थलचर चार पैर वाले पशुओं की चौरासी हज़ार वर्ष, उरपरिसरों की तिरपन हज़ार वर्ष को, भुजपरिसर्प की बयालीस हज़ार वर्ष और पक्षियों की बहत्तर हज़ार वर्षकी होती है । १॥ तथा गर्भ से उत्पन्न होने वाले जलचरों की पूर्व क्रोड वर्ष, स्थलचरों की तीन पल्योरम, उरपरिसर्थ और भुजपरिसरों की पूर्व क्रोड वर्ष और पक्षियां की पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग प्रमाण उत्कृष्ट श्रायु होती है ॥२॥ इन्हीं को संग्रणी गाथाए कहते हैं । अपितु जघन्य से अधिक, उत्कृष्ट से न्यून आयु को मध्यम आयु जानना चाहिये। इसके अनंतर मनुष्य और व्यंतरों की स्थिति प्रतिपादन करते हैं
मनुष्य और व्यंतरों की स्थिति ।
मणुस्साणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गो. यमा ! जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं तिरिण पलिओवमाइं, संमुच्छिममणुस्साणं जाव गोयमा ! जहणणेणवि अंतोमुहृतं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं, गब्भवक्कतिय
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