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[श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] २ चंद्र के देवियों की
५० हज़ार ३सूर्य विमानोंके देवोंकी।
१००० हज़ार वर्ष अधिक ४ सूर्य विमानोंके देवियों की
५०० वर्ष अधिक , ५ ग्रह विमानोंके देवोंकी
एक पल्य ६ ग्रह विमानोंके देवियों की
अर्द्ध पल्य की ७ नक्षत्र विमानों के देवोंको - नक्षत्र विमानों के देवियों की , पल्य के च०से कुछ अधिक
तारा विमानों के देवोंकी पल्पक बा० से कुछ अधिक चतुर्थांश । १० तारा० देवियों की पल्य का श्रा० भा० श्राठवें भागसे कुछ अधिक
यह सभी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति है। किन्तु जो उत्कृष्ट से न्यून और जघन्य से अधिक हो उसे मध्यम स्थिति जानना चाहिये । अब ज्योतिषी देवों के अनन्तर चौवीसवें दण्डक की स्थिति वर्णन करते हैं अर्थात् वैमानिकादि देवों की स्थिति का स्वरूप प्रतपादन करते हैं -
कैमानिकादि देवा की स्थिति ।
वेमाणियाणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं पलि भोवमं उक्कोसे तेत्तीसं सागरो. वामइं, वेमाणियाणं भंते ! देवीणं केवइयं कालं ठिई पएणत्ता ? गोयया ! जहरणेणं पलिप्रोवम,उकोसेणं पणपण्णं पलिअोवमाइं, सोहम्मेणं भंते ! कप्पे देवाणं केवइयं काल ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं पलिश्रोवम उक्कोसे दो सागरोवमई , सोहम्मेणं भंते । कप्पे परिग्गहिया देवीणं जाव गोयमा ! जहणणेणं पलिओवम उकोलणं सत्त पलि. अोवमाइं.सोहम्मेणं कप्पे अपरिग्गहियादवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पराणत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं पलिओवमं उक्कोसेणं पण्णासं पलिभोवमं, ईसाणेणं भंते ! कप्पे देवाणं पुच्छा, गोयमा ! जहणणेणं साइरेगं पलिओवमं
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