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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] २५ अपराजित देवों की ३१ ,
___३३ , २६ सर्वार्थ सिद्ध देवों की ३३ ,
३३ , परन्तु सर्वार्थ सिद्ध विमान के देवों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति केवल ३३ सागर की होती है । अतः इसीको सूक्ष्म श्रद्धा पल्योपम अथवा श्रद्धा पल्योपम जानना चाहिये । ( सू० १४२ ) अब इसके पश्चात् क्षेत्र पल्योपम के प्रमाण की व्याख्या की जाती है
क्षेत्रवल्यापम का प्रमाणा। से किं तं खेत्तपलिश्रोवमे ? २ दुविहे पण्णत्ते, तंजहासुहुमे य ववहारिए य, तत्थ णं जे से सुहुमे से ठप्पे, तत्थणं जे से ववहारिए से जहानामए पल्ले सिया जोयणं आयामविक्खम्भेणं जोयणं उव्वेहेणं तं तिगुणं सविसेसं परिकावे. वेणं, से गां पल्ले एगाहियबेहियतेआहिय जाव भरिए वालग्गकोडीणं, ते णं वालग्गा णो अग्गी डहजा जाव णो पूइत्ताए हव्वमागच्छेजा, जे णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा तेहिं वालग्गेहि अप्फुन्ना, तओणं समए २ एगमेगं आगासपएसं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे जाव निट्टिएभवइ से तं ववहारिए खेत्तपलिओवमे |
एएसिं पल्लाणं कोडाकोडी भवेज दस गुणिमा । तंववहारिअस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं ।१।
एएहिं ववहारिएहिं खेत्तपलिओमवसागरोवमेहिं कि पोअणं ? एएहि ववहारिएहि खेत्तपलिओवमसागरोवमेहिं नस्थि किंचिप्पओअणं, केवलं पण्णवणा ® किज्जइ, से तं ववहारिए खेत्तपलिओवमे ।
"* परणवि० प्र० ।”
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