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[ उत्तरार्धम् ] वाले नीचे के ग्रैवेयक विमानों के देवों की स्थिति कितने काल की होती है ? (गोयमा । जहरणेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइ उक्कोसेणं एगणतीसं सागरोवपाइ',) हे गौतम !,जघन्य स्थिति २८ सागरोपम की और उत्कृष्ट से २६ सागरोपम की होती है, (वरिममज्झिमगेवेजविमाणेसु णं भंते ! देवाणं पुच्छा,) हे भगवन् ! ऊपर वाले मध्यम के प्रैवेयक विमानों के देवों को स्थिति कितने काल की होती है ? (गोयमा ! जहएणेणं एगुणतीसं सागरोवमाई उकोसेणं तीसं सागरोवमाइ',) हे गौतम ! जघन्य स्थिति २६ सागरोपम की और उत्कृष्ट ३० सागरोपम की होती है, ( उवरिमउवरिम गवेजत्रिमाणेमु णं भंते ! देवार्ण पुच्छा,) हे भगवन् ऊपर वाले |वयक विमानों के देवोंको स्थिति कितने कालको होती है ? (गोयमा ! जहएणणं तीसं सागरोवनाई उक्कोसेणं एक्कतीसं सागरोवमाइ,) हे गौतम ! जघन्य स्थिति तीस सागरोपम की और उत्कृष्ट ३१ सागरोपम की होती है । अब अनुत्तर विमानों के विषय में कहते हैं
(विजयवे तयन्त जयन्तअपराजितविमाणेसु णं भंते ! देवाणं केव: कालं ठिई पएणता ?) हे भगवन् ! विजय, वेजयन्त, जयंत और अ राजित विमानों के देवों की स्थिति कितने काल को प्रतिपादन की गई है ? (गोयमा ! जहएणणं एककतीसं सागगेवमाई उक्कोसेण तेत्तीसं सागगेवमाइ, ) हे गौतम ! इनकी जघन्य स्थिति ३१ सोगरोपम की
और उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की होती है। सबट्टसिद्धणं भंते ! महाविमाणे देवाणं केवइयं कालं ठिई परणता ?) हेभगवन् ! सर्वार्थ सिद्ध महाविमान के देवोंकी स्थिति कितने काल की प्रतिपादन की गई है ? ( गोयमा ! अजहरणमणु रक्कोसेणं तेत्तीस सार.रोबमाइ। ) हे गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति केवल तेतीस सागरोपम की होती है क्योंकि उक्त विमानों में मध्यम स्थिति नहीं होती । (सेतं सुहुमे अढापलिग्रोवमे, सेत्तं श्रद्वापलिग्रोवमे) इस लिये इसी को ही सूक्ष्म अद्धा पल्योपम और इसी को अद्धापल्योपम कहते है ।
(सु० १४२ ) भावार्थ-वैमानिक देवी की जघन्य स्थिति एक पल्योपम की और उत्कृष्ट ३३ सागरोपम तक होती है, तथा उनके देवियों की जघन्य तो एक पल्य की और उत्कृष्ट ५५ सागरोपम की होती है। किन्तु दूसरे कल्प से ऊपर देवियें उत्पन्न नहीं होती. इस लिये दूसरे कल्प तक देवियों की स्थिति वर्णन की गई है, इनके दो भेद है, परिगृहीत और अपरिगृहीत । जो परिगृहीत प्रथम देवलोक में हैं उनकी जघन्य स्थिति एक पल्य की और उत्कृष्ट सात पल्य की, तथा अप. रगृहीतों की जघन्य स्थिति एक पल्य की और उत्कृष्ट ५० पल्य की होती है।
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