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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम्
१११ पम की और उत्कृष्ट २२ सागरोपम की होती है, ये सभी बारह देव लोक के देवों की स्थिति जानना चाहिये । * अब नव अवेयक देवों में से पहिले नीचे के त्रिक की स्थिति वर्णन करते हैं।
(हटिमटिंमगेबिज्ज विमाणेसुण भंते ! देवाण केवइयं कालंठि पएगाते ?) हे भगवन् ! नीचे के त्रिक के नीचे के अवेयक विमानों के देवों को स्थिति कितने काल की प्रति पादन की गई है ? ( गोपमा ! जहरणे वावीसं सागोनपाई उपोसणं तेवीसं सागरी वमाई,) हे गौतम ! जघन्य स्थिति २२ सागरोपम को और उत्कृष्ट से २३ सागरोपम की होती है. ( हेष्टिमजिमगेविज विमारणेनु गं भंते ! श्याणं व कालं ठिक पण्णता ? ) हे भगवन् ! नीचे के मध्यम प्रवेयक विमानों के देवों की स्थिति कितने काल की प्रतिपादन की गई है ? (सोमा ! गहरा तसं सागपनाः उमासणं चवीसं सागरी वमाई) हे गौतम ! जघन्य स्थिति २३ सागरोपम को और उत्कृष्ट से २४ सागरोपम की होतो है, (हटिम वरिभगंपिजविमाणे गमत ! देवाग पुच्छा.) नीचे के ऊपर वाले ग्रीवे. यक विमानों के देवों को स्थिति कितन काल की होती है ? (नाबमा ! जहएणे चउवीसं सातशेषमाई इकको नेगा पावासं तामाई,) ह गौतम ! जघन्य स्थिति २४ सागरोपम की ओर उत्कृष्ट २५ सागरोपम की हाता है, (माजमहटिमगांवजविमाणे मुणं भंते ! वाणं पुच्छा,) हे भगवन् ! मध्यम के नीचे वाले विमानों के देवों की स्थिति कितने काल की होती है ? (iiयमा ! गहरणे पणवीस सामगंवाई उकारणं छब्बीस सागरोवमाइ.) हे गौतम ! जघन्य स्थिति २५ सागरोपम को और उत्कृष्ट २६ सागरो. पम को होती है, (मनिझामज्झिमग विमाणन वं भते ! देवा पुच्छा,) हे भगवन् ! मध्यम के मध्यम अवेयक विमनों के देशों की स्थिति कितने काल होती है ? (गायमा ! जहएणणं छब्बीस सागरोधमाई उकोसेणं सत्तावास सागरोवाई,) हे गोतम ! जघन्य स्थिति २६ सागरोपमं की और उत्कृष्ट २७ सागरोपम को हाती है, (मजिक वरिमगवजविमाणेसु णं भंते ! देवाणं पुच्छा, हे भगवन् मध्यम के ऊपर वाले वेयक विमानों के देवों की स्थिति कितने काल की हाती है ? (गोयमा ! जहरणेणं सत्तावासं सातशेवभाई उकोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाई,) हे गौतम ! जघन्य स्थिति २७ सागशेषम की और उत्कृष्ट से २८ सागरोपम को होतो है, ( उरिमहेष्टिपविजविमाणेसु गण भंते ! देवाग पुच्छा,) हे भगवन् ! ऊपर
*- अवेयक बिमानोंके तीनत्रिक है, जिनमें प्रथम के त्रिक में १११ विमान, द्वितीय में १०७ और तृतीय त्रिकम १०० हैं, इस लिये प्रथम त्रिक का नाम नीचे का त्रिक दूसरे का मध्यम त्रिक और तीसरे का ऊपरला विक है ।
-नीचे अधसो ह. प्रा०. ब्या०.८.२. १४१ अवस्: शब्दस्य ४' इत्य यादशो भवति ।
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