________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
८8
[ उत्तरार्धम् ] की होती है, ( पजतगई दियाणं पुच्छा,) हे भगवन् ! पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की होती है ? ( गोयमा ! जहरणेण अंतोमुहुत्तं उकोसेण बारस संवच्छर णि अन्तो मुहुत्तूणाई, ) भो गौतम ! जघन्य स्थिति अंतमुहूर्त की और उप्कृष्ट अंतर्मुहूर्त न्यून बारह संवत्सर की होती है । (तेइंदियाणं पुच्छा,) हे भगवन् ! त्रीन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की प्रति पादन की गई है ? ( गोयगा ! जहणणेणं अन्तोमुहुत्तं उकोप्सेण एगुणपण्णासं राइंदियाणं, हे गौतय ! जवन्य स्थिति अंतर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट ४९ दिवस रात्रि की होती है, (अपजत्तगते देयागपुच्छा,) अपर्याप्त त्रीन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल को होती है ? ( गोपमा ! जहरणेणवि अन्तोमुहुत्तं उकोसेण वि अन्तोमुहुत्तं,) हे गौतम ! जघन्य से भी अन्तर्महूर्त को और उत्कृकृष्ट से भी केवल अन्तर्मुहूर्त की ही होती है, (पजत्तगई दियाण पुच्छा,) पर्याप्त त्रीन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की होती है ? ( गोयमा ! जहरणे " अन्नोमुहत्तं उकोसेण एगुणपरणासं राइंदियाई अन् गोमुहत्तणाई.) भो गौतम! जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त न्यून ४९ दिन रात्रि की होती है । (चदियाण भंते ! केवइयं कालं ठिई पनते ?) हे भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की प्रति पादन को गई है ? (गोयमा ! जहएणणं अन्तोमुहुत्तं उको पेग छन्मासा,) हे गौतम ! जघन्य से अंतर्मुहर्त की
और उत्कृष्ट षट मास की होती है, (अपजत्तगचउरिंदियाण पुच्छा,) हे भगवन् ! अपर्याप्त चतुरिंद्रिय जीवों की स्थिति कितने काल को होती है? (गोयमा ! जहरणेणवि अन्तोमुहुत्तं उक्को. सेणवि अन्तोमुहु,) हे गौतम ! जघन्य से मी अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट से भी केवल अन्तमहत्त को होती है, ( पजत्ताचारिं दियाण पुच्छा,) हे भगवन् ! पर्याप्त चतुरिंद्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की होती है ? (गोयमा ! जहरणेण अन्तोमुहुत्तं उक्कोसेण
(यह मेटर ८८ पेज के ऊपर का है, पाठक ध्यान पूर्वक पढ़ें) पांच स्थावर जघन्य सिथिति उत्कृष्ट स्थिति पृथ्वी काय अंतर्मुहूर्त प्रमाण २२००० बावीसहज़ार वर्ष अप काय
७ सात हज़ार वर्ष तेजस्काय
३ तीन दिन रात्रि वायुकाय
३ तीन हज़ार वर्ष वनस्पतिकाय
१० हज़ार वर्ष यह सभी बादर पांच स्थावरों की स्थिति है, किन्तु सूक्ष्म पर्याप्त, अपर्याप्त, और औधिक इन तीनों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति सिर्फ अंतर्मुहूर्त ही की होती है। अब इसके आगे विकलेन्द्रियों की स्थिति का वर्णन किया जाता है
For Private and Personal Use Only