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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ]
श्रद्ध प० साव नेइयतिरिक्खजोशियम गुत्सदेवाण आज्यं मविज्जति, ) इन सूक्ष्म श्रद्धापल्योपम और स.गरोपमों से नारकीय, तिर्यग योनिक, मनुष्य और देवताओं की आयु का मान किया जाता है अर्थात् उक्त प्रमाणों से चारों गतियों के जीवों की आयु की प्रमिति की जाती है इसीलिये इसे अध्वन् काल कहते हैं ।
भावार्थ - जैसे स्थूल श्रद्धापल्य का वर्णन पहिले किया जा चुका है, उसी प्रकार सूक्ष्मपल्य का भी स्वरूप जानना चाहिये, किन्तु विशेषता केवल इतनी ही है कि एक २ वालाय के श्रसंख्यात २ खंड कल्पित कर लेने चाहिये जो कि की गाना से श्रसंख्यात भाग प्रमाण हों और सूक्ष्म पनकजीव की व गाना से असंख्यात गुणाधिक हो, र उनबालानों में से एक एक को सौ २ वर्ष के अनंतर निकाला जाय, जितने काल में वह पल्य खाली होजाय उसी को श्रद्धा पल्य कहते हैं । जब दश कोटा कोटि प्रमाण पल्य खाली होजाय तब एक श्रद्धा सागर होता है, इसके विवरण करने का मुख्य प्रयोजन केवल इतना ही है कि इससे नारकीय १, तिर्य्यक योनिक २, मनुष्य ३ और देवों की ४ आयु का मान किया जाता है, अतः सर्व जीवों की श्रायु का मान इसी के द्वारा किया जाता है इसी लिये अब आयु के विषय में विवरण करते हैं
नारकियों की स्थिति ।
रइयाणं भंते! केवइथं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहराणेणं दस वाससहस्साईं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोमाई, रयणप्पभापुढविणेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पन्नते ? गोयमा ! जहन्नेणं दस वाससहस्सा ' उक्को सेणं एवं सागरोवमं, अपजत्तगरयणप्पभापुढविणेइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहराणेवितोमुत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं पज्जतगरयण पभापुढविणेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई प० १ गोयमा ! जहणणें दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई उक्कोसेणं एवं सागरोवमं अंतोमुहुत्तोणं, सक्करप्पभा
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