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[ उत्तराधम् ]
उक्कोसेणं पंचसयाइ'; तत्थ संजा सा उत्तरखेउनिया सा जहररोणं अंगुलरस संखेज्जइभागं, उक्कोसें धणुसहस्सा) हे भगवन् ! तमस्तमः पृथ्वी के नारकियों के शरीर की कितनी बड़ी अवगाहना प्रतिपादन की गई है ? भो गौतम ! तमस्तमः पृथिवी के नारकियों की अवगाहना दो प्रकार से प्रतिपादन को गई है, एक भवधारणीया, दूसरी उत्तरवैक्रिया । उन में से जो भवधारणीया है, वह जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है, उत्कृष्ट ५०० धनुष प्रमाण है । दूसरी उत्तरक्रिया, जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट १००० धनुष् प्रमाण है ॥ ७ ॥
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भावार्थ - उक्त सूत्र में सातों नरकों के नारकियों की श्रवगाहना के विषय में विवरण किया गया है। सम्पूर्ण नारकियों की अवगाहना दो प्रकार की है । एक भारतीया और दूसरी उत्तरवैकिया । भवधारणीया श्रवगाहना जघन्य सर्वत्र अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट पूर्व नरकों की अपेक्षा उत्तर नरकों में दुगुनी - दुगुनी है। उत्तरवेकिया, जघन्य सर्वत्र अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट भवधारणीया से सर्वत्र दुगुनी - दुगनी है । नारकियों की माना का विवरण यहां समाप्त होता है । और देव की अव गाहना का विवरण प्रारम्भ होता है । देव चार प्रकार के हैं- भवनपति १, व्यन्तर २, ज्योतिष्क ३ और कल्पवासी ४ । इन में सब से पहले अब भवनपतियों की गाना के विषय में कहते हैं
असुरकुमाराणं भंते! के महालिया सरीरोगाहणा पत्ता ? गोयमा ! दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा -- भवधारणिज्जाय उत्तरवेउविद्या य । तत्थ गंजा सा भवधारणिज्जा सा जहणणेणं अॅगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्को सेणं सत्तरयणो; तत्थ गांजा सा उत्तरवेउव्विा सा जहरोगां
गुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणस्य सहरसं । एवं असुरकुमारागमेणं जाय थणियकुमाराणं ताव भाणिअव्वं
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पदार्थ - (कुते ! के महालय सगाह पर गोयमा ! दुविर पण्णत्ता, तं जहा-भवथारविज्ञाय उत्तराय) हे भगवन ! असुरकुमारों को शरीर - अ०