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[ उत्तरार्धम् ] भावार्थ-समय किसे कहते हैं ? समय का स्वरूप निम्न प्रकार से है, जैसे कि- कोई देवदत्त नामक दरजी का बालक तरुण, बलवान, चतुर्थ समय का उत्पन्न हुआ हुआ, युवा निरोग शरीर स्थिर हस्ताग्र दृढ़ है जिसके, पाणि और पाद, पुनः पाश्य, पृष्टयन्तर उरु आदि भी सुपरिणमित है तथा युगलताडं वृक्षों के समान सम है और जिसकी बाहु दीर्घ है, कठिन मांसोपचित वर्तलाकार जिसके स्कन्ध है, और व्यायाम से भी जिसका शरीर पुष्ट है, तथा वक्षःस्थल में भी बल प्राप्त हो रहा है ऐसा सदैव शीघ्र कार्य करने वाला, दक्ष, प्रज्ञावान, कुशल और मेधावी है, पुनः निपुण और शिल्पोपगत है उसने एक महान् उत्तीर्ण वा लघु पट्टशाटिका हाथ में लेकर एक हस्त प्रमाण फाड़ दिया। जिस कोल में उस युवा पुरुष ने उस वस्त्र को फाड़ा क्या वही समय काल होता है ? नहीं, क्यों ? संख्यात तंतुओं के समुदाय से पदृशाटिका की उत्पत्ति होती है, इसलिये ऊपरके तंतु के छेदन किये बिना नीचे का तंतु छेदन नहीं होता, सो ऊपर के तंतु-छेदन का समय और है, तथा नीचे के तंतुओं का छेदन समय और है इसलिये वह समय काल नहीं है । जिस काल में उस युवा पुरुष ने उस पट्टशाटिका के ऊपर के तंतु को छेदन किया है, तो क्या वह समय होता है ? नहीं, किस कारण ? संख्यात पक्ष्मणों के समुदाय से एक तंतु उत्पन्न होता है सो ऊपर के पक्षमलों के बिना छेदन हुए नीचे का पक्ष्म छेदन नहीं होता है और उनके छेदन काल का समय पृथक २ है इसलिये वह भी समय काल नहीं होता है ! क्या ऊपर के पक्ष्म के छेदनकाल को समय कहते है ? नहीं । क्यों ? अनन्त परमाणुओं के मिलने से एक पग की उत्पत्ति होती है, इसलिये उनका भी छेदन काल पृथक् २ है। इसलिये प्रतिपादन किया गया है कि समय काल बहुत ही सूक्ष्म है । तथा असंख्यात समयों के मिलने से एक प्राव. लिका होती है, संख्योत प्रावलिकाओं का एक उच्छाल और निःश्वास होता है, सो प्रसन्न मन, निरोग शरीर, जरा और व्याधि से रहित पुरुष के एक श्वासोच्छ्वास को एक प्राण कहते हैं, और सात प्राणों का एक स्तोक, सात स्तोको का एक लव होता है, ७७ लवों का एक मुहूर्तकाल वर्णन किया गया है, तीन सहस्र सात सौ तिहत्तर श्वासोच्छ्रास का एक मुहूर्त होता है, फिर तीस मुहतों
+वत्र विरोप।
* 'असंखेजासु वं भंते ! उस्स.प्पणिणीसु केवइया समया पशगता ?, गोयपा! असंखेज्जा, अरांतासु णं भंते ! उस्सप्पिणिसु केवइया समया पण्णता ?, गोयमा ! शांता' इ ते वचनात ।
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