________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
७२
[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] अग्गी दहेज्जा णो वाऊ हरेज्जा णो कुहेज्जा णो विद्धंसेज्जा नो इत्ताए हव्वमागच्छेज्जा, तो गं समए २ एगमेगं वालग्गं अवहाय जाइए काले से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे गिट्टिए भवइ, से तं सुहुमे उद्धारपलिश्रोत्रमे एए सिं पल्जाणं कोडाकोडी हवेज्ज दस गुणिया । तं सुमस्स उद्धारसागरोवमस्स एगस्स भवे परिमाणं ॥ १ ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
एएहिं सुहुमउद्धारपलिओमसागरोवमेहिं किं पचअणं ? एएहिं सुमउद्धारपलिभोवम सागरोवमेहि दीवसमुदाणं उद्धारं घेइ | केवइयाण' भंते ! दोवसमुदा उद्धारेण पण्णत्ते ? गोयमा ! जावइयाण अड्डा इज्जाए उद्धार सुहुमसागरोवमाणं उद्धारसमया एवइयाणं दीवसमुद्दा उद्धारेण पण्णत्ता, से तं सुहुमे उद्धारपलिश्रवम, सेतं उद्धार
|
पदार्थ - ( से किं तं सुहुमे उद्धारप लियो मे ?, २ से जहानामए) सूक्ष्मउद्धारपल्यो - म किसे कहते हैं ? जैसे कि - ( पल्ले सिया जोयणं श्रायामविक्खंभेणं ) धान्य के पल्य के समान पल्य हो और वह योजन प्रमाण दीर्घ और विस्तार युक्त हो और (जोयण ं उत्रेहेणं) योजन प्रसारण भूमि के नीचे स्थित हो, ( तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवें ) फिर उसकी परिधि कुछ विशेष त्रिगुणी भी कथन की गई हो ( से गं पल्ले एगाहिश्र ) फिर उस पल्य में एक दिन के, ( वेग्राहि ) दो दिन के, (तेग्राहि ) तीन दिन के, ( उसे सत्तरतपरूदाएं ) उत्कृष्ट से सात दिन तक के वृद्धि किये हुए केशों से,
१ 'पलि'० इति पाठान्तरम् ।
२ '०' इति पाठान्तरम् ।
३ 'उद्धारसागरीवमाri' इति पाठः ।
For Private and Personal Use Only