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[श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] गुणा करने से धनांगुल होता है (एएसि णं सूईअंगुलयर गुलघणं गुलाणं कयरेकयरहितो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिएवा) हे भगवन् ! इन सूच्यंगुल ? प्रतरांगुल, और घनांगुलों का परस्पर अल्प-बहुत्व, तुल्य-विशेषाधिकब किस प्रकार से है, ( सव्यत्योवे सू अंगुले पयरंगुले असंखेज गुणे, घणंः ले असंखेजणे ) भो गौतम ! सब से छोटा सूच्यंगुल होता है, प्रतरांगुल उससे असंख्यात गुणाधिक है । और घनांगुल प्रतरांगुल से भो असंख्यात गुणाधिक होता है । (से तं उस्सेहंगुले) सो वही उत्सेधांगुल होता है।
- भावार्थ--उत्सेधांगुल भी तीन प्रकार से वर्णन किया गया है। जैसे कि सूच्यंगुल १, प्रतरांगुल २, और घनांगुल ३ । एक अंगुल प्रमाण दीर्घ और एक प्रदेशिक रूप श्रेोणि को सूव्यं गुल कहते हैं। फिर सूच्यंगुलके साथ सूची को गुणा करने से प्रतरांगुल होता है । फिर प्रतरांगुल को सूची से गुणा करने से घनांगुल होता है । सब से स्तोक सूच्यं गुल है। प्रतरांगुल उससे असंख्य त गुणा है, घनांगुल उससे भी असंख्यात गुणा बड़ा है। यह सब अाकाश प्रदेशों की अपेक्षा से कथन किया गया है। इसलिये सूच्यंगुल से प्रतरांगुल के प्रदेश असंख्यात गुणाधिक और प्रतरांगुल से धनांगुल के प्रदेश असंख्यात गुणाधिक होते हैं। यह परस्परापेक्षा अधिक जानना। इन का पूर्ण विवरण पूर्व में लिखा गया है। इजी को उत्सेधांगुल कहते हैं । अब प्रमाणांगुल का विवरण किया जाता है
अध ध मागुल का विषय । से किं तं पमाणंगुले ? पमाणंगले एगमेगस्स रगणो चाउरंतवकवहिस्स अट्टसोवण्णिए कागणीरयणे छत्तले दुवालसंसिए अटकरिणए अहिगरणसंठाणसंठिए पण्णत्ता, तस्स णं एगामेगा कोडी उस्सेहंगुलविक्रखंभा तं सामणस्स भगवओ महावीरस्स अद्धगुलं, तं सहस्सगुणियं पमाणंगुलं भवइ. एएणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाइंपादो,
दो पायाओं विहत्थी, दो विहत्थीओ रयणी, दो रयणीयो १-“दुवालसंगुलाई विहत्थी' इत्यप्यत्र पाठान्तरम् । २-"वितस्मिवसतिभरतकातरमातुलिङ्ग हः” प्रा० व्या०, अ०८, पा १, सूत्र २१४ । इत्येननतस्य हः ।
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