________________ वैदिक ग्रन्थों में अनेक प्रकार के प्रायश्चित्तों के नाम भी आये हैं और उन ग्रन्थों में प्रायश्चित्तों की विधि भी बताई गई है। हम उनमें से कुछ प्रायश्चितो का संकेत कर रहे हैं। यह प्रायश्चित्त जल में खड़े रहकर दिन में तीन बार अघमर्षण मन्त्रों का पाठ किया जाता है / इस प्रायश्चित्त का उल्लेख ऋग्वेद,' बोधायकधर्मसूत्र, वसिष्ठस्मृति, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति,' विष्णुपुराण, शंखास्मृति" आदि में हुआ है। दूसरा अतिकच्छ प्रायश्चित्त का उल्लेख है। आचार्य मनु के अभिमतानुसार तीन दिन तक केवल प्रातःकाल एक कौर भोजन और सन्ध्याकाल भी एक कौर भोजन और बिना मांगे पुनः तीन दिन तक एक कौर भोजन और अन्त में तीन दिन तक उपवास करने का उल्लेख है। अतिसान्तपन इस प्रायश्चित्त की अवधि अठारह दिनों की है। इसमें छह दिनों तक गोमूत्र और अन्य पांच वस्तुओं का भोजन करते हैं। . अर्धकृच्छ. यह छह दिनों का प्रायश्चित्त है। जिसमें एक दिन में केवल एक बार भोजन, एक दिन सन्ध्याकाल' और दो दिन तक बिना मांगे भोजन और फिर पूर्ण उपवास / गोमूत्रकृच्छ। एक गाय को जौ और गेहूं खिलाया जाता है, फिर माय के गोबर में से जितने दाने निकलें, गौमत्र में उसके आटे की लापसी और माडें बनाकर पीना चाहिए। चान्द्रायण'२ चन्द्र के बढ़ने और घटने के अनुरूप जिसमें भोजन किया जाय उसे चान्द्रायण-व्रत कहते हैं। चान्द्रायण-व्रत के यवमध्य जो के समान बीच में मोटा और दोनों छोरों से पतला, पीपिलिकामध्य चींटी के सहश बीच में पतला और दोनों छोर में मोटा ये दो प्रकार बोधायनधर्मसूत्र में दिए हैं। मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति और वसिष्ठस्मृति में चान्द्रायण यवमध्य की परिभाषा इस प्रकार की है-शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन एक ग्रास, | 1. ऋग्वेद 10/190/1-3 बोधायनधर्मसूत्र 4/2/19/20 3. वसिष्ठस्मृति 26/8 4. मनुस्मृति 11/259-260 याज्ञवल्क्यस्मृत्ति 3/301 6. विष्णुपुराण 55/7 शंखस्मृति 18/1-2 8. मनुस्मृति 11/213 9. विष्णुपुराण 46/21 10. आपस्तंबस्मृति 9/43-44 11. प्रायश्चित्तसार पृ. 187 (क) मिताच्छरा याज्ञवल्क्यस्मृति टीका 3/323 (ख) बोधायनधर्मसूत्र 3/8/33. (ग) वसिष्ठस्मृति 27/1 (घ) मनुस्मृति 11/27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org