________________ 232] [निशीथसूत्र 2. पाहार अधिक मात्रा में आ गया हो, परठना आवश्यक हो उस समय अचानक मूसलधार वर्षा प्रारम्भ हो जाय जो कि सूर्यास्त के बाद रात्रि तक चालू रहे और आहार रखना पड़े तो यह आगाढ परिस्थिति है। इस प्रकार रखे हुए आहार को किंचिन्मात्र भी खाना नहीं कल्पता है। खाने पर द्वितीय (78 वें) सूत्र के अनुसार प्रायश्चित्त आता है। व्याख्याकार ने आगाढ परिस्थिति से रोगादि कारणों को ग्रहण किया है तथा दुर्लभ द्रव्य आदि रखने को भी आगाढ कारण में बताया है। किन्तु आगम-वर्णनों से यही स्पष्ट होता है कि भिक्षु रात्रि में खाद्य पदार्थ आदि का संग्रह कदापि न करे क्योंकि दश. अ.६ में कहा है कि 'जो भिक्षु खाद्य पदार्थों के संग्रह का इच्छुक भी होता है वह 'गृहस्थ' है, साधु नहीं है।' सन्निधि (संग्रह) निषेधसूचक कुछ प्रागमस्थल इस प्रकार हैं 1. दशवै० अ० 3 गा. 3 में 'सण्णिही अनाचार कहा है। 2. बिडमुभेइमं लोणं, तिल्लं सप्पिं च फाणियं / ण ते सण्णिहिमिच्छंति, णायपुत्तवओरया // -दश० अ० 6 गा० 18 3. जे सिया सण्णिहीकामे, गिही, पव्वइए-न से / __-दश० अ० 6 गा० 19 4. सण्णिहिं च न कुव्वेज्जा, अणुमायं पि संजए। मुहाजीवी असंबद्धे हवेज्ज जगणिस्सिए / ---दश० अ०८ गा०२४ 5. तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाइमं साइमं लभित्ता / होही अट्ठो सुए परे वा, तं न निहे न निहावए, जे स भिक्खू / / -दश० अ० 10 गा०८ 6. कय-विक्कय-सणिहिओ विरए, सन्वसंगावगए य जे स भिक्खू / -~-दश० अ० 10 गा०१६ 7. चउबिहे वि आहारे, राइभोयणवज्जणा / __सण्णिही संचओ चेव, वज्जेयन्वो सुदुक्करं / / -उत्तरा० अ० 19 गा० 30 8. सणिहि च ण कुवेज्जा, लेवमायाए संजए। पक्खीपत्तं समादाय, हिरवेक्खो परिवए / -उत्तरा० अ० 6, गा० 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org