________________ 452] [निशीथसूत्र आलोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमहरित्तं तेण परं अट्टपंचमासा। 42. अड-पंचमासियं परिहारट्ठाणं पटुविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेविता आलोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहोणमइरितं तेण परं पंचमासा। 43. पंच-मासियं परिहारहाणं पटुविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारद्वाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्यावसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं अद्धछट्ठामासा। 44. अद्धछट्ठमासियं परिहारहाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअझैं सहेउं सकारणं अहोणमइरित्तं तेण परं छम्मासा। 36. डेढ मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहनकाल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त पाता है। जिसे संयुक्त करने से दो मास की प्रस्थापना होती है। 37. दो मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहनकाल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके पालोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त आता है / जिसे संयुक्त करने से ढाई मास की प्रस्थापना होती है। 38. ढाई मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहनकाल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त पाता है। जिसे संयुक्त करने से तीन मास की प्रस्थापना होती है। 39. तीन मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहनकाल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त पाता है / जिसे संयुक्त करने से साढे तीन मास की प्रस्थापना होती है। 40. साढे तीन मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायशित्तत वहनकाल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त पाता है / जिसे संयुक्त करने से चार मास की प्रस्थापना होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org