________________ 376] [निशीथसूत्र ग्रामानुग्राम जाती हुई निर्ग्रन्थी के मस्तक को अन्यतीथिक या गृहस्थ से ढकवाता है या ढकवाने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुचोमासी प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन-साधु को स्वयं का काय-परिकर्म आदि गृहस्थ से करवाने का प्रायश्चित्त पन्द्रहवें उद्देशक में कहा गया है / यहां निर्ग्रन्थ के द्वारा निर्ग्रन्थी का या निर्ग्रन्थी के द्वारा निर्ग्रन्थ का गृहस्थ से कायपरिकर्म करवाने का प्रायश्चित्त दो पालापकों द्वारा कहा गया है / ऐसी प्रवृत्ति करने में गहस्थ को साधु-साध्वी के संयम में संदेह हो सकता है इत्यादि दोष पांचवें उद्देशक के संघाटी सिलवाने के सूत्र में कहे गये दोषों के समान समझ लेना चाहिए। अन्य संपूर्ण सूत्रों का विवेचन तीसरे उद्देशक के समान समझना चाहिए / सदृश निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों को स्थान न देने का प्रायश्चित्त 123. जे णिग्गथे जिग्गंथस्स सरिसगस्स अंते ओवासे संते, ओवासं न देइ, न देतं वा साइज्ज। 124. जाणिग्गंथी णिग्गंथीए सरिसियाए अंते ओवासे संते, ओवासं न देइ, न देतं वा साइज्ज। 123. जो निर्ग्रन्थ सदृश प्राचार वाले निर्ग्रन्थ को अपने उपाश्रय में अवकाश (स्थान) होते हुए भी ठहरने के लिये स्थान नहीं देता है या नहीं देने वाले का अनुमोदन करता है। 124. जो निर्ग्रन्थी सदृश प्राचार वाली निर्ग्रन्थी को अपने उपाश्रय में अवकाश होते हुए भी ठहरने के लिये स्थान नहीं देती है या नहीं देने वाली का अनुमोदन करती है। (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन-जो समान समाचारो वाले हों, प्राचेलक्य आदि 10 कल्पों में जो समान हों और सदोष आहार, उपधि, शय्या और शिष्यादि को ग्रहण नहीं करते हों वे सब 'सदृश साधु' कहे जाते हैं। अपने उपाश्रय में जगह होते हुए उन सदृश साधुओं को अवश्य स्थान देना चाहिये। . किसी आपत्ति के कारण आने वाले साधु यदि असदृश हों तो उन्हें भी अवश्य स्थान देना चाहिये / स्थान होते हुए भी स्थान नहीं देने पर धर्मशासन की अवहेलना होती है और संयमभावों की हानि होती है, राग-द्वेष की वृद्धि होती है / अतः ऐसा करने पर साधु या साध्वी को इन सूत्रों के अनुसार प्रायश्चित्त पाता है। मालोपहृत श्राहार ग्रहण करने का प्रायश्चित्त 125. जे भिक्खू मालोहडं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा देज्जमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेत वा साइज्जइ / 125. जो भिक्षु दिये जाते हुए मालापहृत अशन, पान, खादिम या स्वादिम को लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org