________________ 408] [निशीयसूत्र उपलब्ध 32 आगमों में 9 सूत्र उत्कालिक हैं यथा---- 1. उववाईसूत्र, 2. रायपसेणियसूत्र, 3. जीवाजीवाभिगमसूत्र, 4. प्रज्ञापनासूत्र, 5. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र, 6. दशवैकालिकसूत्र, 7. नन्दीसूत्र, 8. अनुयोगद्वारसूत्र, 9. आवश्यकसूत्र / शेष ग्यारह अंग प्रादि 23 अागम कालिकसूत्र हैं। नन्दीसूत्र में 29 उत्कालिकसूत्रों के नाम हैं और 42 कालिकसूत्रों के नाम हैं / आवश्यक सूत्र मिलाने से कुल 72 सूत्र होते हैं / आवश्यकसूत्र को अनुयोगद्वारसूत्र में उत्कालिकसूत्र कहा है / नन्दीसूत्र में 12 उपांग सूत्रों में से 5 को उत्कालिक और सात को कालिक कहा है तथा चन्द्रप्रज्ञप्ति एवं सूर्यप्रज्ञप्ति में से भी क्रमशः एक को कालिक और एक को उत्कालिक कहा है / अतः इससे भी कोई परिभाषा निश्चित नहीं की जा सकती है। गणधरों द्वारा रचित पागम तो कालिक ही होते हैं और दृष्टिवाद आदि अंगसूत्रों में से भाषा-परिवर्तन के बिना ज्यों का त्यों उद्धृत किया गया आगम भी कालिकश्रत कहा जाता है, क्योंकि वह तो उन अंग सूत्रों का मौलिक रूप ही होता है / किन्तु अन्य पूर्वधरों के द्वारा अपनी शैली में रचित पागम को उत्कालिक श्रुत समझना चाहिए। क्योंकि इसमें अर्थ की मौलिकता रह सकती है किन्तु सूत्र की मौलिकता नहीं रहती है। आगमों की 32 या 45 संख्या मानने की परम्परा भी अलग-अलग अपेक्षा से तथा किसी क्षेत्र-काल में की गई कल्पना मात्र ही समझनी चाहिए। वास्तव में नन्दीसूत्र में 72 सूत्रों के नाम हैं, वह नन्दीसूत्र की रचना के समय उपलब्ध आगमों की सूची है। उसमें स्वयं नन्दीसूत्र का भी नाम है जो एक पूर्वधर श्री देवर्द्धिगणी क्षमा श्रमण (देव वाचक) द्वारा रचित है / तथा अन्य भी एक पूर्वधर द्वारा रचित अनेक आगमों के नाम वहाँ दिए गये हैं। अनेक प्रागमों के रचनाकाल या रचनाकार का कोई प्रामाणिक इतिहास भी नहीं मिलता है। नन्दीसूत्र में कहे गए महानिशोथ आदि सूत्रों के खण्डित हो जाने पर उन्हें पूरक पाठों से पूरा किया गया है। ग्रन्थों में आगमों की परिभाषा इस प्रकार कही गई है सुत्तं गणहर रइयं, तहेव पत्तेय बुद्ध रइयं च / सुय केवलिणा रइयं, अभिन्न दस पुचिणा रइयं // 154 // -बृहत्संग्रहणो इस गाथा के अनुसार प्रत्येक बुद्ध, गणधर, 14 पूर्वी तथा सम्पूर्ण दस पूर्वधरों की रचनासंकलना को सूत्र या आगम कहा जा सकता है। नन्दीसूत्र के अनुसार भी भिन्न दस पूर्वधरों का श्रुत, सम्यग् भी हो सकता है और असम्यग् भी / किन्तु 10 पूर्व सम्पूर्ण धारण करने वालों का श्रुत (उपयोगयुक्त होने पर) सम्यग् ही होता है। उपलब्ध अागमों में चार छेदसूत्र, दशवैकालिकसूत्र तथा प्रज्ञापनासूत्र के रचनाकार ज्ञात हैं जो 10 पूर्व तथा 14 पूर्वधर माने जाते हैं / आवश्यकसूत्र एवं ग्यारह अंगसूत्र गणधर रचित माने जाते हैं तथापि प्रश्नव्याकरणसूत्र आदि में गणधर रचित सम्पूर्ण विषय हटाकर अन्य विषय ही रख दिए गए हैं, जिनका नन्दीसूत्र में निर्देश भी नहीं है। अन्य अनेक उपलब्ध सूत्रों के कर्ता अज्ञात हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org