________________ उन्नीसवां उद्देशक] [407 इन चारों सन्ध्यात्रों में प्रागम के मूल पाठ का उच्चारण, वाचन एवं स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। क्योंकि स्वाध्याय करने पर ज्ञान के अतिचार (अकाले को सज्झायो) का सेवन होने से तथा अन्य दोषों के होने से प्रस्तुत सूत्र के अनुसार लघुचौमासी प्रायश्चित्त प्राता है / उत्काल में कालिकश्रुत को मर्यादा उल्लंघन का प्रायश्चित्त 9. जे भिक्खू कालियसुयस्स परं तिण्हं पुच्छाणं पुच्छइ, पुच्छंतं वा साइज्जइ / 10. जे भिक्खू दिठिवायस्स परं सत्तण्हं पुच्छाणं पुच्छइ, पुच्छंतं वा साइज्जइ / 9. जो भिक्षु कालिकश्रुत की तीन पृच्छाओं से अधिक पृच्छाएँ अकाल में पूछता है या पूछने वाले का अनुमोदन करता है। 10. जो भिक्षु दृष्टिवाद की सात पृच्छात्रों से अधिक पृच्छाएं अकाल में पूछता है या पूछने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लधुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है।) विवेचन-कालिकश्रुत के लिए दिवस और रात्रि का प्रथम और अन्तिम प्रहर स्वाध्याय का काल है और दूसरा तीसरा प्रहर उत्काल है। अतः उत्काल के समय कालिकश्रुत का स्वाध्याय नहीं किया जाता है किन्तु नया अध्ययन कंठस्थ करने आदि को अपेक्षा से यहाँ कुछ प्रापवादिक मर्यादा बतलाई गई है, जिसमें दृष्टिवाद के लिए सात पृच्छात्रों का और अन्य कालिकश्रुत आचारांग आदि के लिए 3 पृच्छाओं का विधान किया है। तिहि सिलोगेहि एगा पुच्छा, तिहिं पुच्छाहि णव सिलोगा भवंति एवं कालियसुयस्स एगतरं / दिदिवाए सत्तसु पुच्छासु एगवीसं सिलोगा भवंति // 1. गा.६०६१. तीन श्लोकों की एक पृच्छा होती है, तीन पृच्छा से 9 श्लोक होते हैं / ये प्रत्येक कालिक सूत्र के लिए है / दृष्टिवाद के लिए सात पृच्छानों के 21 श्लोक होते हैं / अर्थात् दृष्टिवाद के 21 श्लोक प्रमाण और अन्य कालिकश्रुत के 9 श्लोक प्रमाण पाठ का उच्चारण आदि उत्काल में किया जा सकता है / "पृच्छा" शब्द का सामान्य अर्थ प्रश्नोत्तर करना होता है। किन्तु प्रश्नोत्तर के लिए स्वाध्याय या अस्वाध्याय काल का कोई प्रश्न ही नहीं होता है अत: यहाँ इस प्रकरण में यह अर्थ प्रासंगिक नहीं है। "पृच्छा" शब्द के अन्य अनेक वैकल्पिक अर्थ भी होते हैं, उन्हें भाष्य से जानना चाहिए। दृष्टिवाद सूत्र में अनेक सूक्ष्म-सूक्ष्मतर विषय, भंग भेद आदि के विस्तृत वर्णन होने से उसकी पृच्छा अधिक कही गई है जिससे उसके अधिक पाठ का उच्चारण एक साथ किया जा सके / कालिकश्रुत और उत्कालिकश्रुत की भेद-रेखा करने वाली कोई स्पष्ट परिभाषा आगमों में उपलब्ध नहीं है / किन्तु नन्दीसूत्र में कालिक और उत्कालिक सूत्रों की सूची उपलब्ध है। उससे यह तो स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कि कौन से आगम कालिक हैं और कौनसे उत्कालिक हैं / किन्तु ये प्रागम उत्कालिक या कालिक क्यों हैं, इसका कारण वहाँ स्पष्ट नहीं किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org