________________ 410] [निशीथसूत्र महामहोत्सवों में स्वाध्याय करने का प्रायश्चित्त 11. जे भिक्खू चउसु महामहेसु सज्झायं करेइ, करेंत वा साइज्जइ। तं जहा-१. इंदमहे, 2. खंदमहे, 3. जक्खमहे, 4. भूयमहे / 12. जे भिक्खू चउसु महापाडिवएसु सज्झायं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ / तंजहा१. आसोय-पाडिवए, 2. कत्तिय-पाडिवए, 3. सुगिम्हग-पाडिवए, 4. आसाढी-पाडिवए। 11. जो भिक्षु इन्द्रमहोत्सव, स्कन्दमहोत्सव, यक्षमहोत्सव, भूतमहोत्सव, इन चार महोत्सवों में स्वाध्याय करता है या स्वाध्याय करने वाले का अनुमोदन करता है / 12. जो भिक्षु आश्विन प्रतिपदा, कार्तिक प्रतिपदा, चैत्री प्रतिपदा और आषाढी प्रतिपदा इन चार महाप्रतिपदानों में स्वाध्याय करता है या स्वाध्याय करने वाले का अनुमोदन करता है। |उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है। विवेचन-आषाढी पूर्णिमा, प्रासौजी पूर्णिमा, कार्तिकी पूर्णिमा और चैत्री पूर्णिमा के दिन और उसके दूसरे दिन की प्रतिपदा [एकम] इन आठ दिनों में स्वाध्याय करने का इन दो सूत्रों में प्रायश्चित्त कहा गया है। ठाणांग अ. 4 में चार प्रतिपदा को स्वाध्याय करने का निषेध किया गया है। वहाँ उनके नाम इस क्रम से कहे हैं "आसाढ पाडियए, इंदमह पाडिवए, कत्तिय पाडियए, सुगिम्हग पाडिवए।" निशीथभाष्य की गाथा 6065 में भी ऐसा ही क्रम कहा गया है, यथा 1 आसाढी, 2 इंदमहो, 3 कत्तिय, 4 सुगिम्हओ य बोद्धब्बो। एते महा महा खलु, एतेसि चेव पाडिवया // ठाणांग सूत्र और निशीथभाष्य की इस गाथा में कहा गया क्रम समान है। इनमें इन्द्र महोत्सव का द्वितीय स्थान है जो प्राषाढ के बाद क्रम से प्राप्त प्रासौज की पूनम एवं एकम का होना स्पष्ट है। प्रस्तुत सूत्र 11 में कहे शेष स्कन्द, यक्ष और भूत तीन महोत्सव क्रमश: कार्तिक, चैत्र और आषाढ इन तीन पूनम-एकम को समझ लेना उचित प्रतीत होता है। किन्तु इसका स्पष्टीकरण ठाणांग टीका एवं निशीथचूणि दोनों में नहीं किया गया है। प्रस्तुत सूत्रों के मूल पाठ में उपलब्ध प्रतियों में महामहोत्सवों में इन्द्र महोत्सव का क्रम पहला कहा है और महाप्रतिपदा में आसोजी पूनम (इन्द्र महोत्सव) और एकम का क्रम तीसरा कहा है, जबकि उपयुक्त भाष्य-गाथा में ठाणांग सूत्र के पाठ के अनुसार व्याख्या की गई है। अत: निशीथ ल पाठ भी ठाणांग के अनुसार ही रहा होगा। इस प्रकार सत्र में इन्द्र महोत्सव----ग्रासोज की पूनम के दिन का प्रथम स्थान है यह स्पष्ट है और स्कन्ध महोत्सव कार्तिक पूनम का द्वितीय स्थान माना जा सकता है क्योंकि स्कन्ध को कार्तिकेय कहा जाता है। शेष यक्ष और भूत महोत्सव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org