________________ 368] [निशीपसूत्र प्रस्तुत प्रायश्चित्तसूत्र प्रोत्सर्गिक उपधि से सम्बन्धित है। उसमें भी जिसकी गणना या प्रमाण (माप) पागम में उपलब्ध है उसी के उल्लंघन का प्रायश्चित्त इससे समझना चाहिए / शेष प्रायश्चित्त प्रमाणाभाव में परम्परागत समाचारी के अनुसार समझना चाहिए / प्रस्तुत विवेचन में कतिपय उपकरणों का माप पागम में न होने के कारण अनुमान से स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है। आगम निरपेक्ष अतिरिक्त उपधि रखने का गुरुचौमासिक प्रायश्चित्त आता है / कारण बिना या कारण के समाप्त हो जाने पर भी प्रोपग्रहिक उपकरणों को रखने पर गुरुचातुमासिक प्रायश्चित्त आता है / औपग्रहिक उपकरणों को सदा के लिए आवश्यक रूप से रखने की परम्परा चलाने पर उत्सूत्रप्ररूपणा का प्रायश्चित्त पाता है और रखने वालों को गुरुचौमासी प्रायश्चित्त प्राता है / अत: डंडा, कंबल, स्थापनाचार्य प्रादि किसी भी उपकरण का आग्रहयुक्त प्ररूपण करना मिथ्याप्रवर्तन समझना चाहिए। विराधना वाले स्थानों पर परठने का प्रायश्चित्त 40. जे भिक्खू अणंतरहियाए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिवेइ, परिवेंतं वा साइज्जइ / 41. जे भिक्खू ससिणिद्धाए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिढुवेइ, परिवेतं वा साइज्जइ। 42. जे भिक्खू समरक्खाए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिवेइ, परिवेतं वा साइज्जइ / 43. जे भिक्खू मट्टियाकडाए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिढुवेइ, परिटुर्वेतं का साइज्जइ / 44. जे भिक्खू चित्तमंताए पुढवीए उच्चार-पासवणं परिवेइ, परिटवेतं वा साइज्जइ / 45. जे भिक्खू चित्तमंताए सिलाए उच्चार-पासवर्ण परिवेइ, परिवेतं वा साइज्जइ / 46. जे भिक्खू चित्तमंताए लेलूए उच्चार-पासवणं परिटुवेइ, परिवेंतं वा साइज्जई। 47. जे भिक्खू कोलावासंसि बा दारूए जीवपइट्ठिए, सअंडे जाब मक्कडा-संताणए उच्चारपासवणं परिवेइ, परिर्वतं वा साइज्जइ / 48. जे भिक्खू थूणंसि वा, गिहेलुयंसि वा, उसुयालंसि वा, कामजलंसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि दुब्बद्धे, दुनिखित्ते, अनिकंपे, चलाचले उच्चार-पासवणं परिटवेइ, परितं वा साइज्जइ। 49. जे भिक्खू कुलियंसि वा, भित्तिसि वा, सिलसि वा, लेलुसि वा अग्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि दुब्बद्धे, दुनिखित्ते, अनिकपे, चलाचले उच्चार-पासवणं परिटुवेइ, परिटूर्वेतं वा साइज्जइ / 50. जे भिक्खू खंधसि वा, फलिहंसि वा, मंचंसि वा, मंडवंसि वा, मालंसि वा, पासायसि वा, हम्मियतलंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि, दुम्बद्धे, दुन्निखित्ते, अनिकपे, चलाचले उच्चार-पासवण परिढुवेइ, परिद्ववेतं वा साइज्जइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org