________________ सोलहवां उद्देशक [367 अक्खा' संथारो' य, एगमणेगंगिओ य उक्कोसो। पोत्थपणगं२० फलगं बितिय पदे होइ उक्कोसो // 1416 // -नि. भाष्य भा. 2 पृष्ठ 192-93 -बृहत्कल्प भाष्य गा. 4096 से 4099 अर्थ- 1. अनेक प्रकार के पीढे, 2. निषद्या, 3. दंडप्रमार्जनिका, डांडिया या डडासन, 4. डगल-पत्थरादि, 5. कैंची (कतरनी), 6. सूई, 7. नखछेदनक, 8. कर्ण-शोधनक, 9. दन्त-शोधनक, 10. छत्र पंचक, 11. चिलमिलिका पंचक, 12. संस्तारक (अनेक प्रकार के तृण), 13. पांच प्रकार के दंड लाठी आदि, 14. तीन मात्रक (उच्चार, प्रस्रवण, खेल मात्रक), 15. अवलेखनिका (बांस की खपच्ची), 16. चर्मत्रिक (सोने, बैठने एवं प्रोढने का), 17. संस्तारक पट और उत्तरपट्ट (ऊनी एवं सूती शयनवस्त्र), 18. अक्ष-समवसरण (स्थापनाचार्य), 19. चटाई आदि, 20. पुस्तक पंचक, 21. फलग-लकड़ी के पाट आदि / भिक्षु इन उपकरणों को उत्सर्गविधि से नहीं रख सकता है, आपवादिक स्थिति में ये औपग्रहिक उपकरण रखे जा सकते हैं। पुस्तक के कथन से अध्ययन की लेखन सामग्री के अन्य उपकरण एवं चश्मे आदि भी क्षेत्रकाल अनुसार आवश्यक होने पर रखे जा सकते हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि इन उपकरणों में सूई, कैंची, छत्र आदि धातु वाले उपकरण भी कहे हैं। पुस्तक, मात्रक, संस्तारक, पाट तथा शयनवस्त्र को भी आपवादिक उपकरण कहा है तथा अनेक प्रचलित उपकरणों एवं पदार्थों का यहां कोई उल्लेख नहीं है / पागम तथा उनके भाष्य टीका के अतिरिक्त भिन्न-भिन्न समुदायों में प्रचलित कुछ उपकरण इस प्रकार हैं 1. नांद, तगड़ी, सूपड़ी, चूली, मूर्ति आदि / 2. गुरुजनों के फोटू आदि। 3. समय की जानकारी के लिए घड़ी। 4. स्थापनाचार्य के लिए ठमणी / 5. पुस्तक रखने के सापड़ा, सापड़ी। 6. योग को पाटली, दांडी, दंडासन / 7. वासक्षेप का डिब्बा या बटुआ / 8. प्लास्टिक के लोटा गिलास ढक्कन ग्रादि उपकरण / 9. रात्रि में रखने के पानी में डालने के चूने का डिब्बा / 10. वस्त्र, पात्र आदि को स्वच्छ करने के लिए साबुन सोडा सर्फ आदि / 11. वस्त्रादि सुखाने के लिए तथा चिलमिली यादि के लिए डोरियां / इन उपकरणों के रखने का विधान प्रागमों में या भाष्य आदि व्याख्या ग्रन्थों में नहीं है। फिर भी अत्यावश्यक होने पर ही संयम एवं शरीर आदि की सुरक्षा के हेतु ये औपग्रहिक उपकरण रखे जा सकते हैं / इसके अतिरिक्त केवल प्रवृत्ति या परम्परा से रखे जाने वाले सभी उपकरण परिग्रह रूप होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org