________________ [निशोषसूत्र 86. जो सचेल भिक्षु सचेल साध्वियों के साथ रहता है या रहने वाले का अनुमोदन करता 87. जो सचेल भिक्षु अचेल साध्वियों के साथ रहता है या रहने वाले का अनुमोदन करता 88. जो अचेल भिक्षु सचेल साध्वियों के साथ रहता है या रहने वाले का अनुमोदन करता 89. जो अचेल भिक्षु अचेल साध्वियों के साथ रहता है या रहने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है।) विवेचन-१. बृहत्कल्पसूत्र उद्देशक में स्त्री-युक्त स्थान में व साध्वी को पुरुष-युक्त स्थान में ठहरने का निषेध है। 2. उत्तराध्ययनसूत्र अ० 16 तथा अ० 32 में भी विविक्त शय्या में रहने का विधान है। 3. दशवकालिकसूत्र अ.८, गा. 54 में कहा है–साधु को स्त्री से सदा भय बना रहता है / 4. उत्तराध्ययन 32, गा० 16 में कहा है कि यदि भिक्षु को विभूषित देवांगनाएं भी संयम से विचलित न कर सकती हो तो भी उसे एकान्त हितकारी जानकर स्त्रीरहित स्थान में ही रहना श्रेयस्कर है। यद्यपि साधु-साध्वी दोनों ही संयम के पालक हैं फिर भी उन्हें एक स्थान में निवास नहीं करना चाहिये। सचेल साधु सचेल साध्वी के साथ रहे तो भी अनेक दोषों की सम्भावना रहती है तो अचेल का साथ रहना तो स्पष्ट ही अहितकर है / निशीथ उद्देशक 9 में साधु-साध्वी के सह-विहार का गुरुचौमासी प्रायश्चित्त कहा गया है और यहाँ सचेल अचेल की चौभंगी के साथ साधु-साध्वी के सहनिवास का गुरुचौमासी प्रायश्चित्त कहा है। ठाणांग सूत्र अ. 5, सू. 417 में कहा है कि आपवादिक परिस्थिति में साधु-साध्वी एक साथ रहे तो भगवद्-अाज्ञा का उल्लंघन नहीं होता है / / ठाणांग सूत्र अ.५, सू. 418 में कहा है कि अचेल निर्ग्रन्थ सचेल निर्ग्रन्थी के साथ रहे तो भगवद्-आज्ञा का उल्लंघन नहीं होता है। परिस्थिति के कारण ऐसा प्रसंग आने पर गीतार्थ के नेतृत्व में विवेकपूर्वक रहा जाता है। उक्त स्थानांग-कथित दस कारणों से साधु साध्वियों के एक साथ रहने का प्रस्तुत सूत्र से प्रायश्चित्त नहीं पाता है / बृहत्कल्प उ. 3, सू. 1-2 में साधु-साध्वी को एक दूसरे के उपाश्रय में खड़े रहना, बैठना, सोना आदि सभी कार्यों का निषेध है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org