________________ तेरहवां उद्देशक [297 रुक न सके तो जहाँ बैठा हो वही मलोत्सर्ग हो जाने से वस्त्र आदि खराब हो सकते हैं। किसी गृहस्थ को ज्ञात होने पर अवहेलना भी कर सकता है। भाष्यकार ने गा. 4337 में कहा है कि यदि किसी को यह ज्ञात हो जाय कि मुझे अमुक काल में अमुक रोग हो ही जाता है और अमुक औषध लेने से नहीं होता है तो बहुत हानि या दोषों से बचने के लिए रोग के पूर्व औषध प्रयोग करना यह रोग शान्ति के लिए होने से सप्रयोजन है तथा लाभदायक है। यद्यपि उत्तराध्ययनसूत्र में औषध सेवन का निषेध है फिर भी अल्प शक्तिवाला साधक रोग पाने पर निर्वद्य चिकित्सा करे तो उसका यहाँ प्रायश्चित्त नहीं है / पार्श्वस्थादि-वंदन-प्रशंसन प्रायश्चित्त 46. जे भिक्खू पासत्यं वंदइ, वंदंतं वा साइज्जइ / 47. जे भिक्खू पासत्थं पसंसइ, पासंसंतं वा साइज्जइ / 48. जे भिक्खू कुसोलं वंदइ, बंदतं वा साइज्जइ / 49. जे भिक्खू कुसीलं पसंसइ, पसंसंतं वा साइज्जइ। 50. जे भिक्खू ओसणं बंबइ, वंदतं वा साइज्जइ / 51. जे भिक्खू ओसण्णं पसंसइ, पसंसंतं वा साइज्जइ / 52. जे भिक्खू संसत्तं वंदइ, वंदंतं वा साइज्जइ / 53. जे भिक्खू संसत्तं पसंसइ, पसंसंतं वा साइज्जइ / 54. जे भिक्खू णितियं बंदइ, वंदतं वा साइज्जइ / 55. जे भिक्खू णितियं पसंसइ, पसंसंतं वा साइज्जइ / 56. जे भिक्खू काहियं वंदइ, वंदंतं वा साइज्जइ / 57. जे भिक्खू काहियं पसंसइ, पसंसंतं वा साइज्जइ / 58. जे भिक्खू पासणियं वंदह, वंदंतं वा साइज्जइ / 59. जे भिक्खू पासणियं पसंसइ, पसंसंतं वा साइज्जइ। 60. जे भिक्खू मामगं बंदइ, वंदंतं वा साइन्जइ / 61. जे भिक्खू मामगं पसंसइ, पसंसंतं वा साइज्जइ / 62. जे भिक्खू संपसारियं वंदइ, वंदंतं वा साइज्जइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org