________________ 330] {নিছী [सूत्र 16 से 69] के समान पूरा पालापक जानना यावत् जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थ से ग्रामानुग्राम विहार करते हुए अपना मस्तक ढंकवाता है या ढंकवाने वाले का अनुमोदन करता है / [उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है / ] विवेचन-भिक्षु यदि गृहस्थ से शारीरिक परिचर्या करावे तो उसे सूत्रोक्त प्रायश्चित्त प्राता है / यहां 54 सूत्रों का विवेचन तीसरे उद्देशक के समान समझे / अकल्पनीय स्थानों पर मल-मूत्र-परिष्ठापन का प्रायश्चित्त 67. जे भिक्खू आगंतागारंसि वा, आरामागारंसि बा, गाहावइकुलंसि वा, परियावसहसि वा उच्चार-पासवणं परिटुवेइ परिवेंतं वा साइज्जइ / 68. जे भिक्खू उज्जाणंसि वा, उज्जाणगिहंसि वा, उज्जाणसालंसि वा, निज्जाणंसि वा, निज्जाणगिहंसि वा, निज्जाणसालंसि वा उच्चार-पासवणं परिढुवेइ, परिवेंतं वा साइज्जइ / 69. जे भिक्खू अट्टसि वा, अट्टालयंसि वा, चरियंसि वा, पागारंसि वा, दारंसि वा, गोपुरंसि वा उच्चार-पासवणं परिट्ठवेइ, परिवेंतं वा साइज्जइ / 70. जे भिक्खू दगमगंसि वा, दगपहंसि वा, दगतीरंसि वा दगट्ठाणंसि वा उच्चार-पासवणं परिवेइ, परिवेंतं वा साइज्जइ / 71. जे भिक्खू सुन्नगिहंसि बा, सुन्नसालंसि वा, भिन्नगिहंसि वा, भिन्नसालंसि वा, कूडागारंसि था, कोट्ठागारंसि वा उच्चार-पासवणं परिदृवेइ, परिवेंतं वा साइज्जइ / ___72. जे भिक्खू तणगिहंसि वा, तणसालंसि वा, तुसगिर्हसि वा, तुससालंसि वा, भुसगिर्हसि वा, भुससालंसि वा उच्चार-पासवणं परिवेइ, परिवेंतं वा साइज्जइ / 73. जे भिक्खू जाणसालंसि वा, जाणगिहंसि वा, वाहणगिहंसि वा, वाहणसालंसि वा उच्चार-पासवणं परिटुवेइ, परिवेतं वा साइज्जइ / 74. जे भिक्खू पणियसालंसि वा, पणियगिहंसि वा, परियासालंसि वा, परियागिहंसि वा, कुवियसालंसि वा, कुविय गिहंसि वा उच्चार-पासवणं परिहवेइ परिवेतं वा साइज्जइ / 75. जे भिक्ख गोणसालंसि वा, गोणगिहंसि वा, महाकुलंसि वा, महागिहंसि वा उच्चारपासवणं परिट्ठवेइ, परिवेंतं वा साइज्जइ / 67. जो भिक्षु धर्मशाला में, उद्यान में, गाथापतिकुल में या परिव्राजक के आश्रम में मल-मूत्र का परित्याग करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है / 68. जो भिक्षु उद्यान में, उद्यानगह में, उद्यानशाला में, नगर के बाहर बने हुए स्थान में, नगर के बाहर बने हुए घर में, नगर के बाहर बनी हुई शाला में मल-मूत्र का परित्याग करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org