________________ पन्द्रहवां उद्देशक] [341 67-75 अकल्पनीय स्थानों में मल-मूत्र परठने का निषेध, -आचा. श्रु. 2 अ. 10 99-154 विभूषा के संकल्पों का तथा प्रवृत्तियों का निषेध, -उत्तरा. अ. 16 तथा --दशवै. अ. 3 अ. 6 अ. 8 इस उद्देशक के 27 सूत्रों के विषयों का कथन अन्य आगमों में नहीं है, यथा--- 1-4 सामान्य साधु साध्वियों की भी आशातना नहीं करना। 76-97 गृहस्थ को आहार-वस्त्रादि न देना तथा आहार एवं वस्त्रादि का लेन-देन पाव स्थादि से नहीं करना। 98 याचना-वस्त्र या निमंत्रण-वस्त्र के उद्गमादि दोषों की गवेषणा न करना / इन विषयों के कुछ संकेत निम्नांकित पागमों में मिलते हैं, यथा-कुशील के साथ संसर्ग करने का निषेध-सूय. श्रु. 1 अ. 9 गा. 28 में है। दूसरे भिक्षुओं को अप्रियवचन कहने का निषेध–दशवै. अ. 10 गा. 18 में है / सामान्य रूप से उद्गम आदि दोषों की गवेषणा का विधान उत्तरा. अ. 24 तथा दशवै. अ. 5 में है। // पन्द्रहवां उद्देशक समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org