________________ सोलहवां उद्देशक] [353 ___34. जे भिक्खू असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा संथारए णिक्खिवइ, णिक्खिवंतं वा साइज्जइ। 35. जे भिक्खू असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा वेहासे णिविखवइ, णिक्खिवंतं वा साइज्ज। 33. जो भिक्षु अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य भूमि पर रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है। 34. जो भिक्षु अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य संस्तारक पर रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है। 35. जो भिक्षु अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य छींके खूटी ग्रादि पर रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन--भिक्षु करपात्री या पात्रधारी होते हैं / अतः हाथ में, पात्र में या पात्र रखने के वस्त्र पर तो प्रशनादि रखा जा सकता है। किन्तु हाथ में या पात्र में ग्रहण किए हुए पाहार को भूमि पर या आसन पर रखना नहीं कल्पता है / पृथ्वी पर अनेक प्रकार के मनुष्य तियंचादि जीव फिरते रहते हैं और वे अशुचिमय पदार्थों का जहाँ तहाँ परित्याग करते रहते हैं, भूमि पर अनेक प्रकार के अपवित्र पुद्गल पड़े रहते हैं, रज आदि भी रहती है, कीड़ो आदि अनेक प्रकार के प्राणी भी परिभ्रमण करते रहते हैं तथा भूमि पर खाद्य पदार्थ रखना लोकव्यवहार से भी अनुचित है, अतः सूत्र में इसका प्रायश्चित्त कहा गया है। वस्त्र का प्रासन या घास का संस्तारक अनेक दिनों तक उपयोग में आता रहता है / उस पर प्राहार रखने से आहार का अंश-लेप लग जाने पर कीड़ियों के आने की सम्भावना रहती है / प्रासन में मैल पसोना आदि भी लगे रहते हैं / अतः आसन पर और इन्हीं कारणों से पहनने के वस्त्र, रजोहरणादि पर प्राहार रखना भी निषिद्ध समझ लेना चाहिए। खूटी, छींके आदि पर रखने से कभी गिरने पर पात्रों के फूटने को सम्भावना रहती है / चूहे आदि भी वहां पहुँच कर काट सकते हैं, गिरा सकते हैं। इत्यादि कारणों से पृथ्वी पर, आसन पर तथा छोंका आदि पर अशनादि रखना निषिद्ध है और रखने पर लघुचौमासो प्रायश्चित्त आता है / प्रादेशिक परिस्थिति के कारण छोंका आदि में आहार को बाँधकर रखना आवश्यक हो तो छींका व उसका ढक्कन रखा जा सकता है, ऐसा निशोथ के दूसरे उद्देशक से स्पष्ट होता है / खाद्य पदार्थों में कई लेपरहित शुष्क पदार्थ भी होते हैं। उन्हें पृथ्वी आदि पर रखने से उपर्युक्त दोष सम्भव नहीं हैं, फिर भी प्रमादरूप प्रवृत्ति हो जाने से दोष परम्परा बढ़ती है / अतः सूत्र में सामान्यरूप से सभी प्रकार के अशन आदि को रखने का प्रायश्चित्त कहा गया है। यदि असावधानी से कोई खाद्य पदार्थ भूमि पर गिर जाए और उस पर रज आदि अपवित्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org