________________ सोलहवां उद्देशक] [357 चादर-तीन चद्दर रखने का उल्लेख आगमों में स्पष्ट है तथा इस सूत्र की चूणि में करपात्र वाले या पात्रधारी जिनकल्पी भिक्षु को एक, दो या तीन चद्दर रखना बताया है / आचारांग श्रु. 1, अ. 8, उ. 4-5-6 में वस्त्र सम्बन्धी अभिग्रहधारी भिक्षु का वर्णन है। वहाँ भी तीन वस्त्र [चद्दर] धारी, दो वस्त्रधारी, एक वस्त्रधारी और अचेलक चोलपट्टकधारी भिक्षु का वर्णन है। __ वस्त्र की ऊणोदरी के वर्णन में एक वस्त्र [चद्दर] रखना मूल पाठ में कहा है / व्याख्या में दो चद्दर रखना भी वस्त्र की उणोदरी होना कहा है। अत: चद्दर को संख्या आगमों में तथा उनकी व्याख्यानों में स्पष्ट है। प्राचा. श्रु. 2, अ. 5, उ. 1 में किस-किस जाति के वस्त्र ग्रहण करना, इस वर्णन में 6 जाति का उल्लेख करने के पश्चात् कहा गया है कि--"जो भिक्षु तरुण एवं स्वस्थ हो, वह एक वस्त्र अर्थात् एक हो जाति का वस्त्र धारण करे दूसरा नहीं।" इस कथन को चद्दर की संख्या के लिए मानकर अर्थ करना उचित नहीं है, क्योंकि यहाँ वस्त्र की जाति का ही विधान किया गया है तथा आगमों में जिनकल्पी व अभिग्रहधारी भिक्षु के लिए भी तीन चद्दर रखने का स्पष्ट उल्लेख है। वस्त्र की ऊणोदरी करने के वर्णन से भी अनेक चद्दर रखना सिद्ध है / अत: समर्थ साधू को एक जाति के वस्त्र ही धारण करना ऐसा अर्थ आचारांगसत्र के पाठ का करना ही प्रागमसम्मत है तथा तीन चहर से कम अर्थात् दो या एक चद्दर रखकर ऊणोदरी तप करना ऐच्छिक समझना चाहिए। भाष्य गाथा 5807 में कहा है कि जिनकल्पी अभिग्रहधारी अादि भिक्षु तीन, दो या एक चद्दर रख सकते हैं किन्तु स्थविरकल्पी को तीन चद्दर नियमतः रखनी चाहिए। भाष्य गाथा 5794 में चद्दर का मध्यम माप 334 23 हाथ तथा उत्कृष्ट 44 23 हाथ . कहा है / अर्थात् तरुण सन्त के लिए साढे तीन हाथ और वृद्ध सन्त के लिए चार हाथ लम्बी चद्दर रखना कहा है। आचारांगसूत्र के वस्त्रैषणा अध्ययन में साध्वी के चद्दरों की चौड़ाई चार हाथ, तीन हाथ तथा दो हाथ की कही है, वहाँ लम्बाई का कथन नहीं है / फिर भी चौड़ाई से लम्बाई तो अधिक ही होती है, इसलिए पांच हाथ की लम्बी चद्दर करने की परम्परा उपयुक्त ही है / उत्तरा. अ. 26 में प्रतिलेखना प्रकरण में जो "छ पुरिमा नव खोडा" का कथन है, उससे भी चद्दर की उत्कृष्ट लम्बाई पांच हाथ की होना उपयुक्त है / साध्वी के लिए जो तीन माप की चार चद्दरों का कथन है वे चद्दरें समान लम्बी-चौड़ी नहीं होती हैं, वैसे ही भिक्षु के तीनों चद्दरें समान नहीं होती हैं / आगमों में इनके माप का उल्लेख न मिलने से उपयोगिता और प्रावश्यकतानुसार छोटी-बड़ी बनाई जा सकती हैं / चद्दर की चौड़ाई का कथन व्याख्या में एक ही प्रकार का अर्थात् ढाई हाथ का बताया है। उसे आगम वर्णन के अनुसार तीनों ही चद्दरों के लिए समझ लेना उचित नहीं है / अतः भिक्षु के तीनों चद्दरों की लम्बाई-चौड़ाई हीनाधिक होती है। वर्तमान में प्रायः पांच हाथ लम्बी और तीन हाथ चौड़ी चद्दर का उपयोग किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org