________________ चौदहवां उद्देशक [319 भाष्य चूर्णिकार ने इतने ही सूत्रों का कथन करते हुए व्याख्या की है। इससे अधिक सूत्रों का होना सम्भव नहीं लगता है / उपलब्ध प्रतियों में तेलादि के 4 सूत्र अधिक मिलने से 12 सूत्र होते हैं। कुछ प्रतियों में ए पात्र के भी सत्रालापक दिये हैं। यों अनेक प्रकार से और भिन्न-भिन्न संख्या में ये सूत्र मिलते हैं। जिनकी जघन्य संख्या 8 है और उत्कृष्ट संख्या 26 है / जो भाष्य चूर्णिकार के बाद कभी जोड़ दिये गये प्रतीत होते हैं तथा इसका कारण भी अज्ञात है। सूत्रपाठ :में "बहुदेसिएण" और "बहुदेवसिएण" एक सरीखे शब्द होने से ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें भी कभी लिपि दोष हुआ हो। सूत्र पाठ के निर्णय में निम्न भाष्य-चूणि के स्थल उपयोगी हैं दग कक्कादि अणवे, तेहि बहुदेसितेहिं जे पादं / एमेव य दुग्गंध, धुवण-उवटेंत आणादी // 4642 // . सुत्ते बहदेसेण वा पादो, बहदेवसितेण वा / एक्का पसली दो वा तिणि वा पसलीओ देसो भण्णति, तिण्हं परेण बहुदेसो भण्णति / अणाहारादि कक्केण वा संवासितेण, एत्य एग राति संवासितं तं पि बहुदेवसियं भवति / बितिय सुत्ते एसेवत्थो णवरं---बहुदेवसितेहिं सीओद-उसिणोदेहि वत्तव्यं / ततिय सुत्ते कक्को, चउत्थ सुत्ते कक्कादिएहि चेव बहुदेवसिहि / जहा अणवपादे चउरो सुत्ता भणिता तहा दुग्गंधे वि चउरो सुत्ता भाणियव्वा / इन व्याख्यायों से यह स्पष्ट हो जाता है कि पहले चार सूत्र पुराने पात्र की अपेक्षा से हैं। इनमें भी पहले दो सूत्र जल से धोने के हैं और बाद के दो सूत्र कल्कादि लगाने के हैं। इसी तरह चार सूत्र बाद में दुर्गन्ध युक्त पात्र की अपेक्षा से हैं / कुल आठ सूत्र हैं। इसमें प्रथम सूत्र में “बहुदेसिएण" पद है और दूसरे सूत्र में "बहुदेवसिएण' पद है, यह भी चूणि से स्पष्ट हो जाता है। अतः इसी क्रम से पाठ सूत्र मूल पाठ में रखे गये हैं। अकल्पनीय स्थानों में पात्र सुखाने के प्रायश्चित्त 20. जे भिक्खू अणंतरहियाए पुढवीए पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयातं वा पयातं वा साइज्जइ। 21. जे भिक्खू ससिणिद्धाए पुढवीए पडिग्गहं आयावेज वा पयावेज्ज वा, आयातं वा पयावेतं वा साइज्जइ। 22. जे भिक्खू ससरक्खाए पुढवीए पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयात वा पयावेतं वा साइज्जइ। 23. जे भिक्खू मट्टियाकडाए पुढवीए पडिग्गहं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयातं वा पयावेतं वा साइज्जइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org