________________ पन्द्रहवाँ उद्देशक भिक्षु की प्रासातना करने का प्रायश्चित्त 1. जे भिक्खू भिक्षु आगाढं वयह, वयंत वा साइज्जइ / 2. जे भिक्खू भिक्खु फरूसं वयइ, वयंतं वा साइज्जइ / 3. जे भिक्खू भिक्खं आगाढ-फरूसं वयह, वयंतं वा साइज्जइ। 4. जे भिक्खू भिक्खु अण्णयरीए आसायणाए आसाएइ, आसाएंतं वा साइज्जइ। 1. जो भिक्षु भिक्षु को रोष युक्त वचन बोलता है या बोलने वाले का अनुमोदन करता है / 2. जो भिक्षु भिक्षु को कठोर वचन बोलता है या बोलने वाले का अनुमोदन करता है / 3. जो भिक्षु भिक्षु को रोष युक्त वचन के साथ-साथ कठोर वचन भी बोलता है या बोलने वाले का अनुमोदन करता है। 4. जो भिक्षु भिक्षु की किसी प्रकार की प्रासातना करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन-दसवें उद्देशक के प्रथम चार सूत्रों में पूज्य गुरुजनों एवं. स्थविरों की और पूज्य रत्नाधिकों की प्रासातना करने का प्रायश्चित्त कहा है / पूजनीयों का विनय करना तो प्रत्येक भिक्षु का कर्तव्य होता ही है, किन्तु सामान्य सन्तों, सतियों या अन्य गच्छ के साधु-साध्वियों के प्रति भी भिक्षु को अविनय-पासातना युक्त वचन-व्यवहार और ऐसी ही अन्य तिरस्कारद्योतक प्रवृत्तियों नहीं करना चाहिए। यदि कोई भिक्षु अपने वचन या व्यवहार पर नियंत्रण न रख कर ऐसी प्रवृत्ति करता है तो वह संयमसाधना से च्युत हो जाता है और सूत्रोक्त प्रायश्चित्त का पात्र बनता है। तेरहवें उद्देशक में ऐसे ही चार सूत्रों से गृहस्थ की पासातना करने के प्रायश्चित्त कहे गए हैं / इनमें प्रथम तीन सूत्रों में वचन सम्बन्धी प्रासातनाओं के प्रायश्चित्तों का कथन करके चौथे सूत्र में अन्य सभी प्रकार की प्रासातनाओं का प्रायश्चित्तों का कथन किया गया है। सचित्त अंब-उपभोग सम्बन्धी प्रायश्चित्त 5. जे भिक्खू सचित्तं अंबं भुंजइ, भुजंतं वा साइज्जइ / 6. जे भिक्खू सचित्तं अंबं विडंसइ, विडंसंतं वा साइज्जइ / 7. जे भिक्खू सचित्त-पइट्ठियं अंबं भुजइ, भुजतं वा साइज्जइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org