________________ 308] [निशीधसूत्र 19-20 गृहस्थ से कौतुक प्रश्न करना या उनका उत्तर देना। 21 भूतकाल सम्बन्धी निमित्त बताना / 22-24 लक्षण, व्यंजन या स्वप्न का फल बताना / 25-27 गृहस्थ के लिये विद्या, मन्त्र या योग का प्रयोग करना। 28 गृहस्थ को मार्गादि बताना / 29-30 गृहस्थ को धातु या निधि बताना। 31-41 पात्र, दर्पण, तलवार आदि सूत्रोक्त पदार्थों में अपना प्रतिबिम्ब देखना। 42-45 स्वस्थ होते हुए भी वमन-विरेचन करना या औषध सेवन करना / 46-63 पार्श्वस्थ, कुशील, अवसन्न, संसक्त, नित्यक, काथिक, पश्यनीक (प्रेक्षणिक), मामक, सांप्रसारिक इन नौ को वन्दन करना या इनकी प्रशंसा करना। 64-78 उत्पादन के दोषों का सेवन कर आहार ग्रहण करना एवं खाना / इत्यादि प्रवृत्तियाँ करने पर लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है। इस उद्देशक के 41 सूत्रों के विषय का कथन निम्न आगमों में है, यथा--- 1-11 जीव विराधना वाले स्थानों में तथा बिना दिवाल वाले ऊँचे स्थानों पर ठहरने का निषेध / -प्राचा. श्रु. 2, अ. 7, उ. 1 तथा-पाचा. श्रु. 2, अ. 2, उ. 1 12 गृहस्थ को अष्टापद, जुआ आदि सिखाने का निषेध / —सूय. श्रु. 1, अ. 9, गा. 17 13-16 गृहस्थ की पाशातना करने का निषेध / दश. अ. 9, उ. 3, गा. 12 17-27 निमित्त कथन का निषेध / -उत्तरा. अ. 8, अ. 15, अ. 17, अ. 20 -~-दश. अ.८, गा.५० 31-41 अपना प्रतिबिम्ब देखना अनाचार कहा गया है। -दश. अ. 3, गा. 3 42-44 स्वस्थ होते हुए भी वमन-विरेचन करना अनाचार कहा है। -दश. अ. 3, गा. 9 -सूय. श्रु. 1, अ. 9, गा. 12 इस उद्देशक के 27 सूत्रों के विषय का कथन अन्य आगमों में नहीं है, यथा२८ मार्ग भूले हुए को, दिग्मूढ़ को और विपरीत मार्ग से जाने वाले को मार्ग बताने का प्रायश्चित्त / 29-30 गृहस्थ को धातु या निधि बताने का प्रायश्चित्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org