________________ तेरहवां उद्देशक] [305 इत्यादि भिन्न-भिन्न गच्छ समुदायों में ऐसे अनेक नियम बनाये गये हैं जो आगम विधानों के अतिरिक्त हैं और समय-समय पर अपनी-अपनी अपेक्षाओं से बनाये गये हैं। इन्हें शिथिलाचार या शुद्धाचार की परिभाषा से सम्बन्धित करना उचित नहीं है। क्योंकि ये केवल परम्पराएँ हैं, आगमोक्त नियम नहीं हैं। धातृपिडादि दोषयुक्त आहार करने के प्रायश्चित्त 64. जे भिक्खू धाईपिंडं भुजइ, भुजंतं वा साइज्जइ / 65. जे भिक्खू दूइपिंडं भुंजइ, भुजंतं वा साइज्जइ। 66. जे भिक्खू णिमित्तपिडं भुजइ, भुजंतं वा साइज्जइ / 67. जे भिक्खू आजीवियपिउं भुजइ, भुजतं वा साइज्जइ / 68. जे भिक्खू वणीमर्गापडं भुजइ, भुजतं वा साइज्जइ / 69. जे भिक्खू तिगिच्छापिडं भुजइ, भुजंतं वा साइज्जइ / 70. जे भिक्खू कोपिडं भुंजइ, भुजंतं वा साइज्जइ। 71. जे भिक्खू माणपिडं भुजइ, भुजंतं वा साइज्जइ / 72. जे भिक्खू मायापिडं भुजइ, भुजतं वा साइज्जइ / 73. जे भिक्खू लोभपिडं भुजइ, भुजंतं वा साइज्जइ / 74. जे भिक्खू विज्जापिडं जइ, भुजंतं वा साइज्जइ / 75. जे भिक्खू मंतपिडं भुजइ, भुजंतं वा साइज्जइ। 76. जे भिक्खू चुण्णपिडं भुजइ, भुजंतं वा साइज्जइ / 77. जे भिक्खू जोगापडं भुजइ, भुजंतं वा साइज्जइ / 78. जे भिक्खू अंतद्धाणपिडं भुजइ, भुजंतं वा साइज्जइ। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्धाइयं / 64. जो भिक्षु धातृपिंड भोगता है या भोगने वाले का अनुमोदन करता है। 65. जो भिक्षु दूतपिंड भोगता है या भोगने वाले का अनुमोदन करता है / 66. जो भिक्षु त्रैकालिक निमित्त कहकर आहार भोगता है या भोगने वाले का अनुमोदन करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org