________________ तेरहवां उद्देशक] [291 18. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा भूइकम्मं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ / 19. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पसिणं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ / 20. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पसिणापसिणं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ। . 21. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा तीयं निमित्तं कहेइ, कहेंतं वा साइज्जइ / 22. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण का लक्खणं कहेइ, कहेंतं वा साइज्जइ / 23. जे भिक्खू अप्मउत्थियाण वा गारस्थियाण वा बंजणं कहेइ, कहेंतं वा साइज्जइ / 24. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारस्थियाण वा सुमिणं कहेइ, कहेंतं वा साइज्जइ / 25. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा विज्ज पउंजइ, पउंजंतं वा साइज्जइ / 26. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा मंतं पउंजइ, पजंतं वा साइज्जइ / 27. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा जोग पउंजइ, पउंजंतं वा साइज्जइ / 17. जो भिक्षु अन्यतीथिकों या गृहस्थों का कौतुककर्म करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 18. जो भिक्षु अन्यतीथिकों या गृहस्थों का भूतिकर्म करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 19. जो भिक्षु अन्यतीथिकों या गृहस्थों से कौतुक-प्रश्न करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 20. जो भिक्षु अन्यतीथिकों या गृहस्थों के कौतुक प्रश्नों के उत्तर देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। 21. जो भिक्षु अन्यतीथिकों या गृहस्थों के भूतकाल सम्बन्धी निमित्त का कथन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 22. जो भिक्षु अन्यतीथिकों या गृहस्थों को उनके (शरीर के रेखा आदि) लक्षणों का फल कहता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है / 23. जो भिक्षु अन्यतीथिकों या गृहस्थों को (उनके) तिल-मसा आदि व्यंजनों का फल कहता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है। 24. जो भिक्षु अन्यतीथिकों या गृहस्थों को स्वप्न का फल कहता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org